Sunday, April 11, 2010

धारावाहिक उपन्यास




प्रिय मित्रो !
आप सबका धन्यवाद कि आप लगातार मेरा उपन्यास ‘बलि’ पढ़ रहे हैं। इस उपन्यास के चैप्टर-7 का शेष भाग पोस्ट करने से पहले आज मैं मेरे नज़दीक पड़ती अमेरिका की राजधानी वाशिंग्टन डी सी में व्हाइट हाउस के सामने वाशिंग्टन मानेमैंट के इर्द-गिर्द घूम रहा हूँ। यह एक विशेष अवसर है क्योंकि अब यहाँ चैरी ब्लाज्म फेस्टीवल चल रहा है जो कि 27 मार्च से लेकर 11 अप्रैल तक रहता है। वाशिंग्टन मानेमैंट के आसपास अमरूदों के पौधों के आकार के बहुत सारे पौधे हैं जिनपर लाल, पीले, नीले, गुलाबी आदि भिन्न भिन्न रंगों के फूल खिले हुए हैं, जो कि स्वर्ग का नमूना पेश करते हैं। चैरी ब्लाज्म का यह नज़ारा इतना दुर्लभ है कि लोग बहुत दूर-दूर से इस अवसर का आनन्द लेने आते हैं। फूलों के ये दुर्लभ पौधे किसी समय जापान के राजा ने लाकर अमेरिकी प्रेजीडेंट को भेंट किए थे। यह दुर्लभ नज़ारा सिर्फ़ पंद्रह दिन ही रहता है।

आओ, अब उपन्यास की बात करें। अब तक आप पढ़ चुके हो कि कैसे खाड़कूवाद ने पंजाब के कालेजों और विश्वविद्यालयों में घुसपैठ की। इससे आगे आप पढ़ेंगे कि कैसे निर्दोष और भोलेभाले लड़के इसकी लपेट में आए। फिर शुरू होगा वह चक्रव्यूह जिसमें समूचा पंजाब उलझ कर रह गया था। चैप्टर -7 का दूसरा भाग प्रस्तुत है।
- हरमहिंदर चहल


बलि
हरमहिंदर चहल
(गतांक से आगे...)

चैप्टर- 7(शेष भाग)

कुछ दिन हॉस्टल में उदासी रही। रणदीप के बग़ैर सभी चुप-चुप से रहते थे। फिर धीरे-धीरे माहौल अपने आप में ढलने लगा। कक्षाएँ बाकायदा आरंभ हो गईं। अब रणदीप के स्थान पर प्रधान किसे बनाया जाए, यह समस्या खड़ी हो गई। एक दिन शाम के वक्त हॉस्टल के बाहर मीटिंग हुई और प्रधान के साथ-साथ कुछ अन्य पद भी सर्वसम्मति से भर दिए गए। विरोधी तो कोई रहा ही नहीं था। लड़के गुरलाभ को प्रधान बनाना चाहते थे। उसने तर्क देकर अपने आप को एक तरफ कर लिया। प्रधान अपनी पार्टी के बाबा बसंत को बना दिया। बाबा बसंत का गाँव नाभा से आगे था। उसका परिवार नामधारी सम्प्रदाय से जुड़ा हुआ था, इस कारण बसंत भी दाढ़ी-केश नहीं काटता था। सफ़ेद गोल पगड़ी बांधता था। उसके लम्बे-चौड़े कद और सिक्खी स्वरूप के कारण सभी उसे बाबा कहने लग पड़े थे। धीरे-धीरे उसका नाम बाबा बसंत ही पड़ गया। फिर मैस के प्रधान की बारी आई। इसी तरह गुरलाभ ने ज़ोर डालकर गुरमीत मीता का नाम तजवीज़ कर दिया। चीफ़ वार्डन की समझ में मैस प्रधान के लिए कोई खुरांट-सा व्यक्ति चाहिए था जिससे लड़के थोड़ा-बहुत डरें भी और उसका दबदबा भी हो। गुरमीत तो यूँ ही दुर्बल-सा और नरम-सा लड़का था। उसके तो मुँह में आवाज़ ही नहीं थी। वह क्या प्रधानी करेगा। गुरलाभ ने लड़ाई के समय अंदाजा लगा लिया था कि गुरमीत मीता क्या चीज़ था। वह समझता था कि गमदूर और उसके साथियों को गुरमीत मीता ने बुलाया था। यहीं से उसे अंदाजा लगाया था कि इसकी अन्दर तक पहुँच थी। कई बार जो दिखता है, वह होता नहीं। यही बात सोचते हुए गुरलाभ ने गुरमीत मीता को मैस का प्रधान बनाने के बारे में सोचा था। गुरलाभ अब हॉस्टल में ऑल इन ऑल था। लेकिन वह सभी पदों पर अपने व्यक्ति लगाकर अपनी चौधराहट पक्की करना चाहता था। मैस प्रधान गुरमीत को बना दिया। बाकी बची नियुक्तियाँ भी हो गईं। क्लब का प्रधान तेजे पंडित को बनाया गया। तेजपाल शर्मा खन्ने के पास का पंडितों का लड़का था। कबड्डी का खिलाड़ी होने के कारण तगड़ी कदकाठी का था। था भी गुरलाभ का यार। सभी उसे आम तौर पर तेजा पंडित कहकर ही बुलाते थे। उसके बाद सबको लगा कि हॉस्टल में अमन-चैन हो गया था।
गमदूर और उसके साथी बीच में दो दिन के लिए चले गए थे। वापस फिर गुरमीत के पास आकर टिक गए। वे क्या करते थे और कहाँ जाते थे, उन्होंने अभी तक गुरमीत को यह रहस्य नहीं बताया था। गमदूर हर तरफ से मीता को परख रहा था। मीता को पुलिस चौकी में हुआ अपमान भूलता नहीं था। उसे लगता था मानो उसका ज़मीर मर गया हो। वह बातचीत में गमदूर से वही बात करता। गमदूर खाया-खेला था, वह हर तरह से मीता को तौल रहा था। वह नहीं चाहता था कि कच्चा लड़का ग्रुप में शामिल हो। फिर बाद में अपना और ग्रुप का नुकसान हो। आम बातचीत में वे काफी खुल गए थे।
''भाई, तुम मुझे बदला लेने का मौका नहीं दे रहे ?'' एक दिन मीता ने फिर बात चलाई।
''मीता, मैं तो कहता हूँ, रहने दे। तू पढ़ाई पूरी कर। अपने घर को जा। कौम की बेइज्ज़ती तो जगह-जगह हो रही है।'' गमदूर ने उसे अक्ल देते हुए भी एक चिंगारी छोड़ ही दी।
''हो सकता है, कोई दूसरा इसे सहन कर ले, पर मेरे से ये बेइज्ज़ती बर्दाश्त नहीं हो रही। मैं अन्दर ही अन्दर तड़प रहा हूँ।''
''अगर तू बिलकुल ही नही मानता तो एक बात है। हमें ऊपर से इस एक्शन को हाथ में लेने का आर्डर नहीं। हथियार तुझे दे देते हैं। तू एक्शन निपटाकर हथियार वापस हमें दे देना।''
मीता की बांछें खिल उठीं।
''मैंने तो कभी कुत्ते को भी डंडा नहीं मारा। इस इतने बड़े एक्शन को करने के लिए मुझे कोई छोटी-मोटी ट्रेनिंग तो दोगे न ?''
''मीता, इस एक्शन के लिए कम से कम दो आदमी चाहिएँ।'' गमदूर चाहता था कि जितने हो सकें, उतने ही लड़के एक्शनों में शामिल किए जाएँ ताकि बाद में घर लौटने लायक न रहें।
''उस बात की चिंता न करो। आदमी है।'' असल में जब अर्जन पुलिस की गिरफ्तारी से डरता इस हॉस्टल में ही रहता था, उस समय दौरान अर्जन और मीता एक-दूसरे के काफी करीब आ गए थे। आसपास के हालात से तंग अर्जन भी उस समय बागी होने को तैयार बैठा था। उधर मीता अपने अपमान का बदला लेने की बातें कर रहा था। उस समय उन दोनों को कोई राह नहीं सूझ रही थी। बाद में गमदूर आदि के आ जाने पर मीता ने अर्जन से बात की। तब तक फिरोजपुरिये गोगे की गुमशुदगी भी पुलिस के लिए सिरदर्द बन गई थी। यह तो सिर्फ़ अर्जन ही जानता था कि गोगा किधर गया। पुलिस अर्जन को खोज रही थी। पहले एक लड़के को अगवा करने, फिर लाला के क़त्ल में उसकी संदेहास्पद भूमिका और अब गोगा की गुमशुदगी। अर्जन इन बातों से सताया पुलिस के खिलाफ़ करने वाले एक्शन में मीता की मदद करने के लिए राजी हो गया। गुरलाभ से निकटता होने के कारण उसका स्वभाव 'ठांय-ठांय' को पसंद करने वाला था।
''पहले किसका सफाया करोगे ?'' गमदूर ने मीता की समझदारी की परीक्षा की।
''पहले संत राम इंस्पेक्टर का।'' मीता का अधिक गुस्सा उसी पर था।
''गलत, बिलकुल गलत।'' गमदूर ने उसकी बात काट दी।
''वह कैसे ?''
''वह यूँ कि अगर पहले ही पुलिस को छेड़ लिया तो चिरंजी बच निकलेगा। पुलिस का इंस्पेक्टर मारना खेल नहीं। उसके बाद तो पुलिस तो सारे इलाके में भिड़ों की तरह फैल जाएगी। चिरंजी को प्रोटेक्शन मिल जाएगी। इसलिए पहले चिरंजी को ऊपर पहुँचाओ। उसके बाद जब बात शांत हो जाए, तगड़े होकर संत राम को पड़ जाओ।''
जनता नगर के लोकल बस अड्डे से जो सड़क अन्दर आबादी की ओर जाती थी, उस पर ही चिरंजी लाल की आटा की चक्की थी। बिल्डिंग के पिछले हिस्से में चक्की लगी हुई थी। अगले हिस्से में उसने दफ्तर बना रखा था जिसका शीशे का दरवाजा सड़क की ओर खुलता था। दफ्तर में बड़ा पलंग लगाकर उस पर गद्दे बिछाये हुए थे। तीर-चार सिरहाने रखे हुए थे। वह अक्सर सिरहाने पर कुहनी टिकाये सिर झुकाकर सड़क की ओर देख रहा होता। अर्जन वक्त-बेवक्त चक्कर लगाकर स्थिति का जायज़ा ले आया था। मुश्किल यह थी कि वहाँ हर समय चार-पाँच लोग बैठकर ताश खेलते रहते थे। गमदूर की यह ख़ास हिदायत थी कि ए.के. 47 का प्रयोग तब तक नहीं करना, जब तुम्हे घिर जाने का खतरा न हो। क्योंकि वह ए.के. 47 चलाकर उस इलाके में खाड़कुओं की मौजूदगी का अहसास पुलिस को नहीं करवाना चाहता था। कई दिन तक विचार-विमर्श होता रहा। आख़िर, गमदूर ने प्लैन बना दिया।
दोपहर के समय पीले रंग का पुलिस का एक मोटर साइकिल चिरंजी की चक्की के सामने आकर रुका। सिपाही (अर्जन) कमर में गन लटकाये अन्दर गया। ताश खेलते चिरंजी लाल से बोला, ''बाबू जी, आपको इंस्पेक्टर साहब बुला रहे हैं।''
तैयार सा तो चिरंजी लाल उसी वक्त होने लगा था जब उसने बाहर पुलिस का मोटर साइकिल आकर रुकता देखा था। चिरंजी लाल ताश के पत्ते फेंकता सिपाही के पीछे बाहर निकला। मोटर साइकिल स्टार्ट रख, गेयर में डाल, क्लच दबाये खड़ा थानेदार बना मीता सामने देख रहा था। चिरंजी लाल उसके करीब होता हुआ बोला, ''हाँ जी, साहब जी, क्या हुक्म है ?'' थानेदार ने मुँह घुमाकर चिरंजी लाल पर आँखें गड़ा दीं।
''क्यों, पहचाना नहीं ?''
''नहीं जी। पहचान तो नहीं पाया। शायद नए आए हो।''
''मैं वो हूँ जिसे तूने जुलूस के समय पुलिस को पकड़वाया था।''
दायीं ओर लटकते होल्डर में से पिस्तौल निकालकर मीता ने चिरंजी के कान से लगा कर दो फायर किए। अर्जन उछल कर मीता के पीछे बैठ गया। अन्दर बैठे लोगों को जब तक कुछ पता चलता, मोटर साइकिल मेन रोड से बायें मुड़ गया और अगले दसेक मिनट में मीता ने मोटर साइकिल को राह में पड़ते एक पड़ाव पर छोड़ा, दोनों ने कपड़े बदले और रिक्शा में बैठ कर कालेज चले गए।
सारे जनता नगर में शोर मच गया कि चिरंजी लाल को पुलिस वाले मार गए। लोग सड़क पर निकल आए। पुलिस के खिलाफ़ हर तरफ भूचाल ही आ गया। मीता और अर्जन जब कमरे में पहुँचे तो कमरा खाली पड़ा था। वे तो उतावले थे अपनी बहादुरी की ख़बर सुनाने को, पर वहाँ तो गमदूर और उसके साथ कमरे में थे ही नहीं। न ही उनका कोई अता-पता था। अगले दिन वे आए तो मीता और अर्जन उन्हें यह बात उन्हें सुनाने को बेसब्रे हुए पड़े थे। लेकिन, गमदूर ने पहले ही बात शुरू कर दी, ''पहला एक्शन तुम्हारा बहुत कामयाब रहा। सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि लोगों के सामने पुलिस को क़ातिल बना दिया। आज मालूम है, शहर में क्या हो रहा है ?''
''क्या ?''
''इधर गिल चौक की तरफ तो जुलूस निकल रहे हैं कि कातिल पुलिस वालों को पकड़ो। सारे लोग समझते हैं कि चिरंजी लाल को पुलिस ने मारा है। कमाल हो गया यार।'' गमदूर हाथ पर हाथ मारकर हँसा।
''अब फिर।''
''अब देखो तमाशा। कुछ दिन लोगों को और पुलिस को ज़रा शान्त होने दो। फिर अगली प्लैन बनाएँगे।''
गमदूर आदि के पीछे-पीछे गुरलाभ कमरे में आ गया। उसे भी मीता के एक्शन का पता चल गया था।
''बल्ले ओए मीते ! तूने तो नजारे बांध दिए। मैं कहूँ, आंधियाँ ला दीं। चिरंजी के क़त्ल और शहर के जुलूस को लेकर तो सब तरफ शोर मचा हुआ है। पर यह तो मैंने सोचा ही नहीं था कि यह काम हमारे शेरों ने किए हैं।'' गुरलाभ ऐसा उत्तेजित था कि उससे बात नहीं हो पा रही थी। उसने मीता को अपनी बांहों के घेरे में कस लिया।
''पूछ न गुरलाभ, मैं तो उस दिन का जला पड़ा था। आज जाकर मन ज़रा हल्का हुआ। पर अभी बड़ा शिकार तो खुला घूम रहा है।''
''बकरे की माँ कितने दिन ख़ैर मनाएगी।'' अर्जन के भी धरती पर पैर नहीं लग रहे थे।
''यूँ ही कब के यूनियन वालों के साथ लाठियाँ भांजे जा रहे हैं। भाई गमदूर तुम पहले आए होते तो इकट्ठा ही सभी का कांटा निकाल देते।''
''गुरलाभ, हर एक काम टाइम के अनुसार होता है। इस काम ने अब होना था, इसलिए हमारा मेल पहले कैसे होता। यह तो कुदरत का खेल है। और फिर इतने उतावले न पड़ो। इस राह पर फूंक फूंक कर कदम रखने पड़ते हैं। पता नहीं, किस वक्त कौन सी विपदा गले पड़ जाए।''
''नहीं भाई, हम यूँ ही नहीं कहते। और फिर इसके होते कैसा डर !'' गुरलाभ ए.के. 47 हाथ में पकड़े उसे देख-परख रहा था।
''मेरी तीन बातें याद रखना। पक्की जान-पहचान के बिना कभी किसी पर विश्वास न करना। सबसे बड़ी बात अन्दर वाली काली भेड़ों से बचकर रहो। मेरा मतलब कोई पुलिस का कैट तुम्हारे में न घुस जाए या तुम्हारे में से पैदा न हो जाए। किसी के मन का कोई पता नहीं होता। बाकी, दिन के समय हथियार न उठाओ। दिन में बाहर न निकलो। एक्शन करके पुराने अड्डे पर कभी न लौटो। किसी नई जगह पर इकट्ठा होना। चौकन्ना ऐसा रहना कि अपने साथ वाले पर भी भरोसा न करो। मतलब उसका भी ख़याल रखो। इस काम को निजी नहीं, बल्कि कौम का काम समझ कर करना है।''
''वो तो सब ठीक है भाई, अब संत राम का भोग कब डाला जाए।'' अर्जन उतावला था।
''अभी नहीं। हम तुम्हें बताएँगे। और अब अपने हथियारों का प्रबंध करो।''
''हम कहाँ से लाएँगे ?'' मीता चिंतित था।
''ला हम देंगे, पर पैसे तुम्हें देने होंगे।''
''इतने पैसे कहाँ से लाएँ ?'' अब अर्जन बोला।
''कोई बात नहीं, थोड़े दिन बाद तुम्हें बताएँगे कि पैसे कहाँ से लाने हैं।''
गुरलाभ ख़ामोश सा बातें सुनता रहा। वह सबकी बातों को तौल रहा था।
रात में रोटी खाने के बाद गमदूर और उसके साथियों न उन्हें हफ्ते तक लौटने का कहकर इजाज़त ली। उन्होंने मीता आदि को हिदायत दी कि चुपचाप कालेज जाएँ, जैसे कि कुछ हुआ ही न हो। अर्जन को उन्होंने हॉस्टल में ही रहने के लिए कहा। सभी से हाथ मिलाकर वे हॉस्टल से बाहर निकल गए।
(जारी…)
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