'बलि' का गुरलाभ
-हरजीत अटवाल(पंजाबी कथाकार एवं उपन्यासकार)
पिछले वर्ष पंजाबी में आए उपन्यासों में 'बलि' अपना एक खास और पृथक स्थान रखता है। इसके कई कारण हैं। एक तो यह पंजाब के काले दिनों की दास्तां का उपन्यास है। लेखक ने अपने इस अनुभव को बहुत सादगी से पेश किया है। पंजाब के दुखांत के बारे में इतनी शिद्दत से लिखा गया शायद यह पहला उपन्यास है। इसके पृथक स्थान का एक खास कारण इसकी पात्र सृजना है। इसके बहुत से पात्र किसी न किसी तरह हालात के शिकार हैं। इसके पात्रों में से एक पात्र है- गुरलाभ। गुरलाभ का आतंकवाद की लहर में पड़ जाने का कोई खास कारण भी नहीं है, वह सहज-स्वभाव ही इस लहर में आ घुसता है। खालिस्तान की लहर में ऐसे युवाओं की भरमार थी जो कि शौकिया तौर पर ही लहर में कूद पड़े थे। अच्छे खाते-पीते घर का लड़का गुरलाभ भी ऐसा ही युवक है और वह इस लहर में ऐसा घुसता है कि फिर अन्दर ही घुसता चला जाता है। इस लहर में शामिल लोगों के काम उसके स्वभाव से मेल खाते हैं। बैंक में डाका पूरे चाव से मारता है। लड़कियों का बलात्कार करना उसका शौक बन जाता है। ज़रूरत पड़ने पर पुलिस से भी हाथ मिला लेता है और पुलिस कैट बनकर अपने ही साथियों को पकड़वाने लगता है और पुलिस को अपने हक में इस्तेमाल भी कर लेता है तथा पुलिस कर्मचारियों की तरक्की का साधन भी बनता है। किसी को अगवा करके फिरौती लेना उसके लिए बहुत ही साधारण-सी बात बन जाती है। उसके दुश्मन दोनों खेमों में हैं। पुलिस तो उसके पीछे है ही, बड़े आतंकवादी उसे खोजते फिरते हैं। उन्हें पता है कि गुरलाभ ने उनके दर्जनों साथियों को पुलिस के हाथों मरवाया है या पकड़वाया है। ऊँचे स्तर के आतंकवादियों अथवा अपने दुश्मनों को खत्म करने में किस्मत उसका साथ देती जाती है। अपने कुकुर्मों में वह अपने खास दोस्तों को भी इस्तेमाल कर लेता है। गुनाह की दुनिया में वह सबको रौंदता हुआ आगे बढ़ता जाता है। किसी वीडियो गेम के हीरो की भाँति अपने सामने आने वालों का सफाया करके साफ़ बचकर निकल जाता है। उसकी बहादुरी देखकर इलाके का मंत्री उसे चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित करता है। गुरलाभ उस मंत्री के विरोधियों का सफाया करने में उसकी मदद करता है। इतने क़त्लों, बलात्कारों और फिरौतियों में से मंत्री उसका बचाव करता है और जब मंत्री को पता चलता है कि पानी सिर से ऊपर बहने लगा है या मंत्री को लगता है कि गुरलाभ उस पर भी हावी होने लगा है तो वह उसे कैनेडा के लिए हवाई-जहाज चढ़वा देता है। गुरलाभ के लिए इस उपन्यास का अन्त बहुत सुखान्तक है, अपनी प्रेमिका के साथ कैनेडा में जा बसना, जहाँ उसने लूट की अथाह दौलत पहले ही भेजी हुई है, से बढ़कर सुख और क्या हो सकता है। लेकिन इस उपन्यास का अन्त पाठक को बेचैन कर जाता है। यही इस उपन्यास की प्राप्ति है। यह उपन्यास पंजाब के आतंकवाद के दौर का दस्तावेजी उपन्यास है। इस उपन्यास का एक किरदार सुखचैन इस गुरलाभ का दोस्त होने के साथ ही बहुत बड़े दुखांत में से गुजर रहा है, पर गुरलाभ बख्शता उसे भी नहीं। उस समय पंजाब में एक नहीं कई गुरलाभ काम करते रहे हैं। वे पंजाब में खून की नदियाँ बहाकर चुपचाप पंजाब में से खिसकते रहे हैं और पश्चिमी देश उनकी पनाहगाह बने हैं। उनकी आत्मा पर किसी किस्म का बोझ नहीं है। जो बाहर के देशों में नहीं जा सके, ऐसे गुनाहगारों को नेताओं ने बड़े चतुर तरीके से मुआफियाँ भी दिला दी हैं, कई तो आजकल राजनीति में सक्रियता से हिस्सा भी ले रहे हैं।
गुरलाभ का किरदार इस उपन्यास की खासियत है। इतने बड़े किरदार पंजाबी उपन्यास में कम ही देखने को मिलते हैं। भविष्य में ऐसे अन्य उपन्यासों की आस रखनी चाहिए।
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-हरजीत अटवाल(पंजाबी कथाकार एवं उपन्यासकार)
पिछले वर्ष पंजाबी में आए उपन्यासों में 'बलि' अपना एक खास और पृथक स्थान रखता है। इसके कई कारण हैं। एक तो यह पंजाब के काले दिनों की दास्तां का उपन्यास है। लेखक ने अपने इस अनुभव को बहुत सादगी से पेश किया है। पंजाब के दुखांत के बारे में इतनी शिद्दत से लिखा गया शायद यह पहला उपन्यास है। इसके पृथक स्थान का एक खास कारण इसकी पात्र सृजना है। इसके बहुत से पात्र किसी न किसी तरह हालात के शिकार हैं। इसके पात्रों में से एक पात्र है- गुरलाभ। गुरलाभ का आतंकवाद की लहर में पड़ जाने का कोई खास कारण भी नहीं है, वह सहज-स्वभाव ही इस लहर में आ घुसता है। खालिस्तान की लहर में ऐसे युवाओं की भरमार थी जो कि शौकिया तौर पर ही लहर में कूद पड़े थे। अच्छे खाते-पीते घर का लड़का गुरलाभ भी ऐसा ही युवक है और वह इस लहर में ऐसा घुसता है कि फिर अन्दर ही घुसता चला जाता है। इस लहर में शामिल लोगों के काम उसके स्वभाव से मेल खाते हैं। बैंक में डाका पूरे चाव से मारता है। लड़कियों का बलात्कार करना उसका शौक बन जाता है। ज़रूरत पड़ने पर पुलिस से भी हाथ मिला लेता है और पुलिस कैट बनकर अपने ही साथियों को पकड़वाने लगता है और पुलिस को अपने हक में इस्तेमाल भी कर लेता है तथा पुलिस कर्मचारियों की तरक्की का साधन भी बनता है। किसी को अगवा करके फिरौती लेना उसके लिए बहुत ही साधारण-सी बात बन जाती है। उसके दुश्मन दोनों खेमों में हैं। पुलिस तो उसके पीछे है ही, बड़े आतंकवादी उसे खोजते फिरते हैं। उन्हें पता है कि गुरलाभ ने उनके दर्जनों साथियों को पुलिस के हाथों मरवाया है या पकड़वाया है। ऊँचे स्तर के आतंकवादियों अथवा अपने दुश्मनों को खत्म करने में किस्मत उसका साथ देती जाती है। अपने कुकुर्मों में वह अपने खास दोस्तों को भी इस्तेमाल कर लेता है। गुनाह की दुनिया में वह सबको रौंदता हुआ आगे बढ़ता जाता है। किसी वीडियो गेम के हीरो की भाँति अपने सामने आने वालों का सफाया करके साफ़ बचकर निकल जाता है। उसकी बहादुरी देखकर इलाके का मंत्री उसे चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित करता है। गुरलाभ उस मंत्री के विरोधियों का सफाया करने में उसकी मदद करता है। इतने क़त्लों, बलात्कारों और फिरौतियों में से मंत्री उसका बचाव करता है और जब मंत्री को पता चलता है कि पानी सिर से ऊपर बहने लगा है या मंत्री को लगता है कि गुरलाभ उस पर भी हावी होने लगा है तो वह उसे कैनेडा के लिए हवाई-जहाज चढ़वा देता है। गुरलाभ के लिए इस उपन्यास का अन्त बहुत सुखान्तक है, अपनी प्रेमिका के साथ कैनेडा में जा बसना, जहाँ उसने लूट की अथाह दौलत पहले ही भेजी हुई है, से बढ़कर सुख और क्या हो सकता है। लेकिन इस उपन्यास का अन्त पाठक को बेचैन कर जाता है। यही इस उपन्यास की प्राप्ति है। यह उपन्यास पंजाब के आतंकवाद के दौर का दस्तावेजी उपन्यास है। इस उपन्यास का एक किरदार सुखचैन इस गुरलाभ का दोस्त होने के साथ ही बहुत बड़े दुखांत में से गुजर रहा है, पर गुरलाभ बख्शता उसे भी नहीं। उस समय पंजाब में एक नहीं कई गुरलाभ काम करते रहे हैं। वे पंजाब में खून की नदियाँ बहाकर चुपचाप पंजाब में से खिसकते रहे हैं और पश्चिमी देश उनकी पनाहगाह बने हैं। उनकी आत्मा पर किसी किस्म का बोझ नहीं है। जो बाहर के देशों में नहीं जा सके, ऐसे गुनाहगारों को नेताओं ने बड़े चतुर तरीके से मुआफियाँ भी दिला दी हैं, कई तो आजकल राजनीति में सक्रियता से हिस्सा भी ले रहे हैं।
गुरलाभ का किरदार इस उपन्यास की खासियत है। इतने बड़े किरदार पंजाबी उपन्यास में कम ही देखने को मिलते हैं। भविष्य में ऐसे अन्य उपन्यासों की आस रखनी चाहिए।
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4 comments:
समीक्षा से तो रोचक जान पड़ता है..
ाच्छी लगी समीक्षा। बधाई।
aapke oopanyaas par ek achchi tathaa sarthak samikcha padi jo iss oopanyaas ko samajhne me aur iskee vishvasniyata ko naye aayaam deti hai .
badhai
भाई अशोक जी, निर्मला जी और भारतीय नागरिक जी,मेरे उपन्यास 'बलि' पर प्रकाशित समीक्षा पर आपकी राय जानकर मुझे खुशी हुई है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
-चहल
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