Sunday, June 13, 2010

धारावाहिक उपन्यास



बलि
हरमहिंदर चहल
(गतांक से आगे...)

चैप्टर- 12(शेष भाग)

अगले दिन सवेरे नौ बजने तक सभी पूरी तरह तैयार थे। गमदूर और तेजा पंडित फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते थे। इसी कारण इन दोनों को पुलिस की वर्दी पहनाई हुई थी। तेजा एस.पी. और गमदूर डी.एस.पी. बना हुआ था। उनमें से कुछ ने इंस्पेक्टर और किसी ने सब-इंस्पेक्टर और हवलदार की वर्दियाँ पहन रखी थीं। शेष लड़कों ने कमांडो सिपाही की वर्दी पहन रखी थी। ओहदे के अनुसार सभी के पास हथियार थे। उन्हें देखकर कोई फ़र्क नहीं निकाल सकता था कि यह नकली पुलिस थी या असली। उसी हिसाब से गाड़ियाँ तैयार थीं। सबसे आगे सायरन वाली पायलट गाड़ी थी। उसके पीछे लाल बत्ती वाली एस.पी. की कार और उसके पीछे स्वराज माज़दा ट्रक में कमांडो सिपाही बने लड़के हाथों में राइफिलें लेकर खड़े थे।
नौ लखा सिनेमा के सामने वाली गली में थोड़ा पीछे हटकर 'बैंक आफ बीकानेर' की मेन ब्रांच थी। आज के दिन बैंक में अधिक से अधिक कैश होता था। बैंक नौ बजे खुलता था। साढ़े नौ बजे समीप के पी.सी.ओ. से गमदूर ने इस बैंक के मैनेजर को कॉल मिलाई। वह अंग्रेजी में बात करने लगा।
''मैं एस.एस.पी. साहब के दफ्तर से बोल रहा हूँ। मैनेजर से बात करवाओ।''
''जी, एक मिनट।'' बैंक कर्मचारी ने इशारे से समझाते हुए फोन मैनेजर की ओर बढ़ाया।
''जी, मैं बैंक मैनेजर राज कुमार बोल रहा हूँ। क्या हुक्म है ?''
''मैं एस.एस.पी. साहिब के दफ्तर से उनका पी.ए. बोल रहा हूँ। साहब तुम्हारे साथ बात करना चाहते हैं।''
''जी, मैं हाज़िर हूँ।'' एस.एस.पी. का नाम सुनकर मैनेजर का कलेजा डूबने लगा। थोड़ी घबराहट भी होने लगी।
''मैं एस.एस.पी. निर्भय सिंह बोल रहा हूँ। तुम कौन ?'' तेजा पंडित ने रौब से पूछा।
''सर, मैं राज कुमार, बैंक का मैनेजर बोल रहा हूँ।'' मैनेजर और अधिक घबरा गया था।
''अच्छा, बड़ी ज़रूरी इन्फर्मेशन है, ध्यान से सुनो।''
''जी !''
''हमें हमारी सोर्स से पता चला है कि तुम्हारे बैंक के स्टॉफ में आतंकवादियों ने घुसपैठ कर ली है। मेरा मतलब है कि तुम्हारे कुछ कर्मचारी उनसे मिले हुए हैं। वे एक-आधे दिन में ही कोई भयानक कार्रवाई करने वाले हैं।''
''ओह माई गॉड !'' मैनेजर बीच में ही बोल उठा।
''घबराने की ज़रूरत नहीं। मैं यहाँ से एस.पी. डिटेक्टिव मि. हंस पाल शर्मा को भेज रहा हूँ। वे अपनी फोर्स के साथ अगले पंद्रह मिनट तक बैंक पहुँच जाएँगे। वे प्रत्येक कर्मचारी से बात करेंगे। गलत कर्मचारियों का पकड़े जाना बेहद ज़रूरी है। तुमने पूरे स्टाफ सहित उन्हें पूरा सहयोग देना है। यह मेरा आर्डर है। और इस बात का ख़याल रखना, उनके आने तक कोई कर्मचारी खिसक न जाए।'' तेजा पंडित ने फोन काट दिया। इधर तेजा पंडित ने फोन काटा, उधर तेजा के आदमियों ने बैंक की सारी फोन लाइनें काट दीं। तेजा पंडित सफ़ेद अम्बेसडर में बैठ गया। कुछ देर बाद ही एस.पी. बने तेजा पंडित की सुरक्षा टुकड़ी सड़क पर धूल उड़ाती जा रही थी। सबसे आगे पायलट गाड़ी में सिपाही एस.एल.आर. लिए खड़ा था। पीछे स्वराज माज़दा में सिपाही गले में राइफिलें लटकाये आस-पास खड़े थे। तीनों गाड़ियाँ धूल उड़ातीं बैंक के सामने जा रुकीं। सिपाहियों ने ट्रक में से उतर कर अपनी-अपनी पोजीशन ले ली। काला चश्मा पहने तेजा पंडित पूरे धड़ल्ले से बैंक के अन्दर दाख़िल हुआ। उसके साथ ही गमदूर, गुरलाभ, अरजन आदि थे। बैंक मैनेजर भयभीत -सा बैंक के गेट पर खड़ा था।
''मैं हूँ एस.पी. डिटेक्टिव हंस पाल शर्मा।'' तेजा ने पूरी अकड़ के साथ मैनेजर की ओर हाथ बढ़ाया। मैनेजर ने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर हाथ मिलाया।
''हाँ जी, बड़े साहिब का अभी फोन आया था।'' मैनेजर घबराये स्वर में बोला।
''तुम देखो तो सही मेरा ऐक्शन। मैं ज्यादा देर नहीं लगाता। पाँच मिनट में दोषी तुम्हारे सामने कर दूँगा। हाँ, प्लीज़ सारे स्टाफ को एक जगह पर इकट्ठा कर लो।''
मैनेजर ने सभी कर्मचारियों को इशारा किया। वे बैंक के बीचोबीच इकट्ठा होने लगे। वहाँ मैनेजर से छोटे मैनेजरों के द्वारा आगे पूरे स्टाफ में यह बात फैल चुकी थी कि एस.एस.पी. का फोन आया है कि यहाँ आतंकवादियों के आदमी स्टाफ में मिले हुए हैं। इस पुलिस पार्टी के आने के बारे में सभी को पता था। कर्मचारी घबराये ज़रूर थे पर डरे नहीं थे। डरने की तो कोई वजह ही नहीं थी। हरेक यह देखने के लिए अवश्य उतावला था कि आतंकवादियों के साथ कौन सा व्यक्ति मिला हुआ है। पुलिस उसके साथ क्या बर्ताव करती है ? बहुत से ग्राहक तो इतनी पुलिस देखकर ही वापिस लौट गए थे या फिर गेट पर खड़े अरजन आदि यह कहकर उन्हें वापस भेज देते कि आगे पुलिस इन्कुआरी चल रही है। तेजा और गमदूर बहुत तरीके से उन सभी को स्ट्रांग रूम की ओर इकट्ठा करने लगे।
''अगर सभी आ गए हैं तो रोल कॉल शुरू करो।'' तेजा गमदूर से बोला।
''हाँ भाई, आ गए सभी या कोई रहता है ?'' गमदूर ने मैनेजर से पूछा।
''जी, सभी हाज़िर हैं।''
''तुम्हें पता नहीं, पुलिस कार्रवाई चल रही है। उधर परे रखो अपने डंडे। इनके पास आकर खड़े होओ।'' गमदूर दो बैंक गार्डों को उछलकर पड़ा जो कि इकहरी नाल वाली बन्दूकें उठाये खड़े थे। उन्होंने जल्दी से दीवार के संग बन्दूकें रखीं और बाकी कर्मचारियों के संग जा खड़े हुए।
सभी जनों को स्ट्रांग रूम के पास इकट्ठा करके गमदूर ने अरजन को पुकारा।
''हवलदार बैंक का गेट बन्द कर दे। इनमें से कोई भाग न जाए।''
अरजन ने शटर गिरा दिया। तेजा ने मैनेजर के कान से रिवाल्वर लगा दिया। बाकी जनों ने भी ए.के. 47 कर्मचारियों की ओर सीधी कर लीं।
''क्यों ? लगा पता कि हम किस मकहमे वाले हैं।'' सुनकर कइयों का पेशाब बीच में ही निकल गया।
''हम कमांडो फोर्स हैं।''
''अगर किसी ने भी चूँ-चाँ की तो खील की तरह भून देंगे।'' अब तक मैनेजर सहित सभी कर्मचारी समझ चुके थे कि नकली पुलिसवाले बनकर कमांडो फोर्स वालों के ड्रामे में वे बुरी तरह फंस गए। फिर कर्मचारियों से ही नोटों की भरी बोरियाँ गेट के पास इकट्ठी करवाई गईं। जब स्ट्रांग रूम बिलकुल खाली हो गया तो पूरे स्टाफ को अन्दर बन्द करके बाहर से ताला लगा दिया। साथ ही स्ट्रांग रूम के अन्दर क्लोरोफॉर्म का स्प्रे कर दिया। उन्होंने शटर उठाया, स्वराज ट्रक बैक करके बैंक के गेट के साथ लगाया। सभी ने फटाफट बोरियाँ ट्रक में लादीं। फिर उन पर पहले की भांति खड़े हो गए। बैंक को ताला लगा दिया। पुलिस काफ़िला वापस लौट गया। सड़क पर पायलट गाड़ी का सायरन सुनकर आम पुलिस वाले भी सड़क छोड़ देते थे। सबको लगता था कि पीछे बत्ती वाली अम्बेसडर में कोई बड़ा पुलिस अफ़सर होगा। कार के पीछे ट्रक के बीच कमांडो भी सिक्युरिटी के लिए थे। कई पुलिस नाकों पर नाके वाली पुलिस ने दूसरी तरफ के ट्रैफिक को रोक कर इस पुलिस काफ़िले को पहले जाने दिया। जब गाड़ियाँ करीब से गुजरती थीं तो नाके पर खड़े सारे पुलिस वाले फुर्ती से सलूट मारते थे। शहर से बाहर निकल कर आगे सुनसान सी जगह में ये गाड़ियाँ किसी लिंक रोड पर मुड़ गईं। गाँवों की सड़कों के इधर-उधर घूमती ये गाड़ियाँ पता नहीं किधर लुप्त हो गईं। किसी को कुछ पता नहीं चला। अब तक के सबसे बड़े डाके की ख़बर जब पुलिस को लगी तब तक सभी लोगों सहित स्वराज माज़दा ट्रक गुरलाभ की कोठी में जा घुसा था। शेष गाड़ियों को उन्होंने कहीं राह में ही लुप्त कर दिया था। कोठी का गेट बन्द करके ट्रक को साइड में लगाकर जब सभी जने ड्राइंग रूम में आए तो एक दूजे की नकल उतारते हुए हँस रहे थे। इतने बड़े ऐक्शन की कामयाबी की सभी को खुशी हो रही थी।
''ओए, अब चाय का घूंट तो पिला दे एस.पी. हंस पाल शर्मा साहब। साले बामण ने मैनेजर का मूत निकाल दिया।'' गुरलाभ ने तेजा के सिर पर धौल जमाते हुए कहा।
तेजा ने सभी के लिए चाय बनाई। चाय पीते हुए फिर वे बैंक में घटित बातों को याद करके हँसते रहे।
''लो भई मित्रो ! हम सही-सलामत पहुँच गए हैं। कल के थके हुए भी हैं। सभी आराम करो, पर पहरे की ड्यूटी बांट लो।'' पहरे वाले छत के ऊपर वाले कमरे में चले गए, बाकी सब गहरी नींद में सो गए।
पुलिस महकमे में खलबली मच गई। सबसे बड़ी डकैती लुधियाना शहर के ऐन बीच में दिन-दिहाड़े हुई थी। पुलिस की इज्ज़त की बात थी। पुलिस ने आसपास एक बड़ा जाल बिछाया। कोई डकैत तो दूर, पुलिस किसी के पैरों के निशान भी न पकड़ सकी। पुलिस ने आसपास के गाँवों में से बहुत से बेगुनाह लड़के उठाये। कइयों की टांगे पाड़ीं, कइयों के हाथ-पैर तोड़े, पर डकैती का भेद हाथ न लगा। पुलिस थ्यौरी के अनुसार डकैत चंडीगढ़ रोड पर से होकर खमाणों तक गए थे। उससे आग पुलिस उनका पता नहीं लगा सकी।
गमदूर आदि सारा दिन गहरी नींद सोते रहे। शाम होने पर पहरे वाले लड़के पहरा बदलकर सो गए। शेष सब उठ खड़े हुए। गमदूर इस कोठी में पहली बार आया था। कोठी के नीचे वाला तहखाना देखकर गमदूर का चित्त खुश हो उठा। इतना बड़ा तहखाना था कि जितना चाहे असला छिपाया जा सकता था। जितने चाहे आदमी छिपाये जा सकते थे। नीचे ही बाथरूम भी बने हुए थे। रहने का पूरा प्रबंध था। गुरलाभ की हिम्मत ने भी गमदूर को पूरी तरह प्रभावित किया था। जैसे ही अँधेरा हुआ, उन्होंने ट्रक में से सामान उतारना आरंभ कर दिया। नोटों के बंडलों वाले बोरे पोलीथीन की शीटों में लपेट कर एक तरफ चिन दिए। इस तरफ से गमदूर खाली होकर दूसरी ओर दिमाग दौड़ाने लगा। हथियारों वाला ट्रक कल रात में आना था। गमदूर उस हिसाब से योजना बनाने लगा। आवश्यक रुपये उसने बोरियों में डालकर एक तरफ रख लिए। अगले दिन उसका आदमी खच्चर रेहड़ा लेकर कोठी के अन्दर दाखिल हुआ। रेहड़े पर लदी खल- बिनौले की बोरियाँ उतार कर बीच में नोटों की बोरियाँ रख दीं। उसके ऊपर फिर खल-बिनौले की बोरियाँ चिन दीं। खच्चर रेहड़ा करीब दो बजे शाने पंजाब ट्रांसपोर्ट के दफ्तर पहुँच गया। सारी बोरियाँ एक तरफ रख दी गईं। रात में ट्रक आया। उन्होंने चाय की पेटियाँ एक तरफ उतार कर रख दीं। गमदूर द्वारा भेजी नोटों की बोरियाँ ट्रक में लाद कर चलते बने। अगले दिन खच्चर रेहड़ा चाय की पेटियाँ गुरलाभ की कोठी पर उतार गया। रात पड़ने पर सारी पेटियाँ तहखाने में लाई गईं। कील उखाड़कर फट्टियाँ एक तरफ करके डिब्बे खोले गए तो गमदूर के चेहरे पर अथाह खुशी चमक पड़ी। पिछले दो महीनों से जिस काम के लिए वह दौड़ा फिरता था, वह आज पूरा हुआ था। पूरी सौ ए.के. सैंतालीस राइफ़िलें। कुछ एस.एल.आर., हैंड ग्रिनेड और गोली-सिक्का का अतिरिक्त सामान था। सारा आवश्यक असला और अन्य आवश्यक सामान बाहर रखकर गमदूर ने बाकी सामान तहखाने में ही रखवा दिया। लूट में से कुछ पैसा बच गया था। पंद्रहेक राइफ़िलें बढ़ गई थीं। ये सारा सामान एक ओर रख कर संभाल दिया गया।
''भाई गमदूर, मजा आ गया। अब चलाएँगे लहर को पूरे ज़ोर से।'' गुरलाभ भी हवा में उड़ रहा था।
''गुरलाभ, अब हमें कुछ ज़रूरी काम भी करने हैं। एक तो अब हमें किसी को अगवा नहीं करना। पैसा बहुत पड़ा है। बाकी निर्दोष व्यक्ति नहीं मरना चाहिए कोई।''
''जैसा तुम कहोगे, हम वैसा ही करेंगे।''
''अब हम इस तरफ से खाली है। बाबा बसंत वाली बात का भी पता लगाना ज़रूरी है।'' गमदूर को अचानक बाबा याद हो आया। गुरलाभ का मुँह कसैला हो उठा। उसने मन ही मन बाबा को गाली बकी, ''साला, कहाँ से नई जलती तीली लगा गया है।''
''भाई हुक्म हो तो एक सलाह दूँ।'' गुरलाभ ने टनकती आवाज़ में कहा।
''बता।''
''जो कुछ हो-हुआ गया, छोड़ो उसे। पचास संगठन घूमते हैं। क्या पता कौन यह कुछ कर गया। अब हम आदमी भी ज्यादा हैं। हथियार भी अधिक हैं। मैं तो कहता हूँ, पूरे ज़ोर से लहर को आगे बढ़ायें।'' गुरलाभ ने उस बात को खत्म कर देना चाहा।
''नहीं गुरलाभ, पहली बात तो यह कि किए कोई और जाता है और बदनाम अपनी कमांडो फोर्स हुए जाती है। दूसरी बात, ऐसे बंदों को ठिकाने लगाना भी तो अपना फर्ज़ बनता है। फिर यह बात स्पष्ट किए बगैर बाबा हमारे संग नहीं मिलने वाला।'' गमदूर बात पर अड़ा हुआ था।
''चल, जैसे सभी की इच्छा है, वैसा ही कर लेंगे।'' गुरलाभ धीमे से बोला, वह समझ गया था कि बाबा बसंत जो तीली लगा गया है, वह इतनी आसानी से बुझने वाली नहीं। उसे कोई डर-भय नहीं था। 'बाबे जैसे बहुत से बेच कर खाये हैं' उसने मन ही मन सोचा। फिर उसे ख़याल आया कि क्यों न वह गमदूर की जगह ले ले। फिर अपनी मन मर्जी से चलाऊँगा संगठन को। यह काम इतना आसान नहीं था। सारा संगठन गमदूर के साथ था। वह कोई गलती भी नहीं करना चाहता था। फिर दूसरी बात भी उसके मन में आती थी कि बीस राइफ़िलें और काफी पैसा उसकी कोठी पर पड़ा है। अगर ज़रूरत पड़ी तो वह खुद ही पार्टी खड़ी कर लेगा। कभी वह कुछ सोचता तो कभी कुछ। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। आख़िर सब कुछ सोचते हुए उसने फिलहाल चुप रहना ही बेहतर समझा।
जैसे ही दोपहर तक इस डाके की बात शहर में उड़ी, बाबा बसंत तभी समझ गया था कि यह ऐक्शन गमदूर ने किया है। उसे गमदूर की सारी स्थितियों का पता था। वह जानता था कि गमदूर के पास आदमी तो बहुत थे, पर हथियारों की कमी थी। अगर गमदूर चाहता तो अगवा जैसी कोई अन्य घटनाएँ करके पैसा एकत्र कर सकता था, पर यह काम गमदूर के उसूलों के खिलाफ था। गमदूर पूरा उसूलपरस्त आदमी था, इसी कारण बाबा बसंत उसकी बहुत अधिक कद्र करता था। वह गमदूर की कमांडो फोर्स में शामिल होना चाहता था। लेकिन वह चाहता था कि गमदूर पहले गलत ऐक्शनों का पता लगाकर उन्हें बन्द करवाये। बाबा बसंत भी कोई ऐक्शन करके पुलिस को झटका देना चाहता था कि इतने में यह बैंक डाके वाला ऐक्शन हो गया। सिक्युरिटी बढ़ गई। बाबा ने अपने ऐक्शन को थोड़ा आगे बढ़ा दिया।
उस दिन बाबा को पता चला कि पुलिस का डी.आई.जी. उस रात जालंधर में रुकेगा। उसने वही रात ऐक्शन के लिए चुन ली। रात के करीब दस बजे उसने अपने आदमी ट्रक में चढ़ाये, अड्डे से बाहर निकला। मुलांपुर मंडी में से उसने पचीस-तीस आदमी अगवा कर लिए। ट्रक को सुधार के पास से होते हुए नहर की पटरी पर चढ़ा दिया। अगले पुल पर जाकर उसने आधा घंटा फायरिंग की। आसपास गहरा लाल रंग बिखेर दिया जो देखने में खून लगता था। उसके बाद वहाँ इश्तिहार फेंक कर उन आदमियों को ले जाकर किसी घर में बन्द कर दिया। दिन चढ़ते नहर के पुल पर पुलिस ही पुलिस थी।
''इन सारे दुष्टों को सोध कर नहर में फेंक दिया गया। बाबा बसंत ने रात में पचीस-तीस आदमी मार कर नहर में फेंक दिए हैं।'' बाबा बसंत का नाम पहले ही बच्चे-बच्चे की ज़बान पर था। इस ऐक्शन ने उसकी दहशत और अधिक बढ़ा दी। जब डी.आई.जी. को इतने बड़ी वारदात का पता चला तो उसने वारदात वाली जगह देखने का कार्यक्रम बना लिया। उन्हें जालंधर से चलकर लुधियाना बाईपास होते हुए वारदात वाली जगह पर पहुँचना था। ऐसा ही बाबा ने सोचा था। यही सोचते हुए बाबा के आदमी सारी रात बाईपास पुल के पास अपनी तैयारी करते रहे थे। करीब दस बजे उधर से पुलिस का काफ़िला आता दिखाई दिया। सायरन पर सायरन बज रहे थे। बहुत सारी गाड़ियाँ थीं। दौड़ भी पूरी रफ्तार से रही थीं। जैसे ही गाडियाँ पुल पर आईं तो दूर बैठे लोगों ने गाड़ी की निशानदेही करके रिमोट दबा दिया। डी.आई.जी. की गाड़ी गुजर गई। उससे पिछली गाड़ी बम्ब धमाके में उड़ गई। कुछ पुलिस वाले मारे गए। कुछ जख्मी हो गए। बाबा ने बड़े प्लैन से चूहे को बिल में से निकाला था। उसकी बढ़ी हुई थी। डी.आई.जी. बच गया। सारा अमला लुधियाना से ही वापस लौट गया। जैसे ही बम्ब धमाके का ऐक्शन हुआ तो उसी रात बाबा सारे अगवा किए हुए आदमियों को चौकीमान के खेतों में छोड़ गया।
उधर कालेज में सिमेस्टर खत्म हो गया था। सिमेस्टर कठिनाई से पूरा हुआ था। खाड़कुओं की धमकियों से कालेज में हड़ताल बहुत बार हो चुकी थी। बहुत से छात्रों के लेक्चर ही पूरे नहीं हुए थे। सरकार की पालिसी थी कि हर तरफ सामान्य-से माहौल का दिखावा किया जाए। सबके लेक्चर पूरे करके सबको पेपर देने की अनुमति दे दी गई। पूरी सुरक्षा में पेपर हुए। जैसे ही आख़िरी पेपर खत्म हुआ, सुखचैन अपना बोरी-बिस्तर समेटता हुआ गाँव भाग गया। कालेज में ही वह हमेशा फेडरेशन वालों से दूरी बनाकर रहता था। आख़िर तक वह बचा ही रहा। गाँव पहुँचने के बाद भी वह घर में कम ही रहता था। कभी खेतों में तो कभी किसी रिश्तेदारी में। वह डरता था कि कहीं कोई पनाह लेने वाला ही न आ टपके। सब ठीकठाक रहा। रिजल्ट भी आ गया। उसने डिप्लोमा प्रथम श्रेणी में पास कर लिया था। घरवाले खुश थे। वह खुश था। बमुश्किल कहीं जाकर सिमेस्टर पूरा हुआ था। वह सदैव डरता था कि कहीं खाड़कुओं की लपेट में न आ जाए। जब उसने डिप्लोमा लिया तो उसका रिकार्ड बिलकुल साफ था। अब उसने नौकरी की तलाश आरंभ कर दी।
(जारी…)
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