Sunday, June 27, 2010

धारावाहिक उपन्यास



बलि
हरमहिंदर चहल
(गतांक से आगे...)

चैप्टर- 13(शेष भाग)

जब तक पुलिस घर से नहीं गई तब तक राजा पड़ोस में ही किसी दोस्त के पास छिपा रहा। थानेदार नंद सिंह द्वारा भाभी हरमनदीप का किया गया अपमान सुनकर उसके अन्दर गुस्से की ज्वाला फूट रही थी। पर वह बेबस था। कुछ कर नहीं सकता था। वह तो स्वयं पुलिस से बचता, जान बचाता घूम रहा था। आख़िर कोई राह न सूझता देख वह लुधियाना अजैब के कालेज की ओर चल पड़ा। उसे अजैब के मिलने की बहुत उम्मीद नहीं थी। वह जानता था कि अजैब अब हॉस्टल में नहीं रहता। न ही पढ़ता था। वह तो अंडर-ग्राउंड था। फिर भी वह हल्की-सी उम्मीद के आसरे ही लुधियाना इंजीनियरिंग कालेज पहुँच गया। यहाँ अजैब के पास पहले वह बहुत बार आ चुका था। तब तो दिन ही और थे। बहारों के और खुशियों के दिन, पर अब तो पूरा परिवार थानेदार नंद सिंह से डरता इधर-उधर जान बचाता फिरता था। वह कालेज में काफ़ी देर तक घूमता रहा। आखिर, उसे कैंटीन की ओर से आता एक लड़का मिल गया जो पहले कभी उसे अजैब के कमरे में मिला था। रस्मी हालचाल पूछने के बाद राजा ने उससे अजैब के बारे में पूछा।
''कैसे ? तुझे पता नहीं अजैब के बारे में ?'' वह लड़का शशोपंज-सी में पड़ गया।
''भाई पता तो है कि वह अब यहाँ कालेज में नहीं मिलेगा। घर में बड़ी भारी आफत आ पड़ी है जिसके कारण उसे खोजता फिर रहा हूँ। सोचा, शायद कालेज में ही कुछ अता पता मिल जाए।'' राजा की उदासी ने लड़के के दिल में सहानुभूति पैदा कर दी।
''तू ऐसा कर, कैंटीन में चलकर बैठ। वहाँ तुझे कोई न कोई लड़का आकर मिलेगा। निकालता हूँ मैं कोई हल। खोजता हूँ किसी को। भाई, संभलकर रहना, टाइम बहुत खराब है।''
कैंटीन में बैठे को उसे घंटाभर हो चुका था जब एक लड़का उसके पास आया। असल में, इस लड़के से भी वह पहले मिल चुका था। जान-पहचान निकलने के कारण किसी को कोई शक-शुबह नहीं रहा था। थोड़ा-सा अँधेरा होने पर वह लड़का राजा को मीता के पास छोड़ आया।
''अजैब तो मुझे लगता है, गाँव ही गया हुआ है। तू छोटे वीर यहाँ किसलिए आ गया।'' मीता ने चिंतित-सा होकर कहा।
''कैसे ? सब सुख है। किसके संग बातें कर रहा है ?'' बाबा बसंत कमरे में से उबासी लेता हुआ बाहर निकला। वह गाँव से आकर गहरी नींद में सो गया था। मीता पहरे पर बैठा था। वह बेफिक्र होकर सोया रहा।
''यह तो यार अजैब का छोटा भाई है, राजा। उसे खोजता फिरता है।''
''क्यों अजैब को क्या हो गया ? वह तो आज तड़के मेरे साथ ही आया है।'' बाबा ने हैरानी में राजा की तरफ देखा।
''भाई जी, अजैब को तो कुछ नहीं हुआ। वह तो तड़के तीन बजे ही घर से निकल गया था। पर लगता है, कोई मुखबिर लगातार निगाह रख रहा था। उसके रात में आने का पता पुलिस को लग गया। चार बजते को वे आ पहुँचे। यह तो शुक्र है कि भाई पहले ही निकल आया था।''
''फिर तो पुलिस ने जुल्म ढाया होगा ?'' मीता जानता था कि फिर क्या हुआ होगा।
''भाई जी, जुल्म कहा तो बहुत कहा। वहाँ तो थानेदार नंद सिंह हमारे परिवार का पक्का वैरी बन गया। बापू और बेबे की काफ़ी बेइज्ज़ती कर चुका है। सुना है, वह बहुत सारे लड़के मार चुका है। मैं तो आप डरता छिपता फिरता हूँ। पर इस बार तो...''
''हाँ हाँ, बता छोटे भाई।'' बाबा का चेहरा सख्त होने लगा।
''थानेदार ने भाभी की बेइज्ज़ती की। उसके कपड़े फाड़ दिए और... हाय, ओ भाई...।'' इससे आगे उसकी रुलाई फूट गई।
''अजैब खाड़कू है तो भाभी का क्या कसूर है। भाभी की इतनी बेइज्ज़ती की है कि जी करता है, आग लगा दूँ सारी दुनिया को।'' राजा गुस्से में तप उठा।
''देख भाई, तू कुछ नहीं करना... जब तक पुलिस का चक्कर खत्म नहीं हो जाता, तू बच कर रहना। न तुझे पुलिस ने छोड़ना है, न ही लहर ने। तुझे छोटा भाई समझकर कह रहा हूँ कि गुस्से में आकर कोई गलत कदम न उठा लेना। एक तू ही है जिसने परिवार को संभालना है।''
''थानेदार नंद सिंह ?'' राजा ने गुस्से में पूछा।
''अब वह मेरा शिकार है। ऐसे दुष्टों को नरक की राह दिखाना मेरा काम है। मैंने तो अजैब को भी इस ऐक्शन से दूर रखना है ताकि बाद में तुम्हारे परिवार पर क़हर न टूटे।'' बाबा बेचैनी में टहलने लगा।
''उतने दिन मैं यहीं रह लूँ ?'' पुलिस से डरता राजा गाँव जाने से डरता था।
''नहीं, तू किसी रिश्तेदारी में चला जा। न ही भविष्य में तुझे किसी खाड़कू से मिलना है। मतलब यह कि तुझे लहर से दूर रहना है।'' बाबा ने समझाया। राजा उसी रात गाड़ी चढ़कर लुधियाना शहर से दूर चला गया। बाबा अजैब की घरवाली की घोर बेइज्ज़ती के बारे में सुनकर अन्दर ही अन्दर उबल रहा था। उसे अपनी बहन की बेइज्ज़ती याद हो आई। थानेदार मुकंदी लाल ने उसकी बहन के साथ थाने में यही कुछ किया था। फिर बाबा को लगा कि जितनी औरतों की पुलिस बेइज्ज़ती कर रही है, वे सब जैसे उसकी माँएँ-बहनें हों। 'कब तक बेइज्ज़त होंगी हमारी बेटियाँ, बहनें थानों में। कौन है इसका जिम्मेदार ?' बाबा को फिर यह एक उलझी हुई तानी लगी। इधर खाड़कू कहलाते कुछ आदमी घरों में जाते थे। बेटी-बहनों के संग जब्र-जिनाह करते थे। उधर पुलिस दिन-दिहाड़े लोगों के घर में घुस कर मन में जो आता था, करती थी। 'किधर जाएँ पंजाब की बहन-बेटियाँ। कौन बचाए उन्हें इन बुच्चड़ों के क़हर से। है कोई माई का लाल?' अपने आप से बातें करता वह वापस वर्तमान में लौटा। उसने आसपास देखा। मीता उसके चेहरे पर नज़रें गड़ाये उसके चेहरे की बदलती भंगिमाएँ देख रहा था। गुस्से में बाबा का चेहरा पत्थर जैसा हो गया।
''और तो जब कोई आएगा, देखा जाएगा, पर तुम्हारी मौत के वारंट बाबा बसंत ने जारी कर दिए हैं। ले लो उधार के साँस जितने ले सकते हो। भाई मीते आज तो मन बहुत ज्यादा उखड़ा पड़ा है।''
बाबा बसंत स्वयं चलकर अजैब के अड्डे पर गया। जब उसने अजैब को सारी बात बताई तो अजैब सिर पकड़कर बैठ गया।
''अजैब, तुझे एक बात बताऊँ।'' बाबा थोड़ा-सा सख्ती में बोला।
''हूँ...।''
''ये जो चूड़ियाँ पहने घूमता है न, इन्हें उतारने का वक्त आ गया। अब बन जा बब्बर शेर। पिछली बातें भूल जा। अब तो यह देख कि तेरे सामने बहन-बेटियाँ कैसे अपमानित की जा रही हैं।''
अजैब ने क्रोध में होंठ काट लिया। उसके निचले होंठ पर खून उभर आया।
''बाबा, चूड़ियाँ तो पहले भी नहीं पहनी थीं। तू मेरा साथ दे, सबसे पहले नंद सिंह को चलता करना है।''
''वह ऐक्शन मैं करूँगा। तूने उसमें हिस्सा नहीं लेना।''
''नहीं बाबा, नंद सिंह के माथे में गोली मैं मारूँगा।''
''देख अजैब, मैं तो यही चाहता हूँ कि अगर तू उस ऐक्शन में नहीं होगा तो तेरे घरवालों पर पुलिस का जुल्म कम होगा।''
''बाबा, भगौड़ा तो मुझे पहले ही किया हुआ है। ऐक्शन से पहले ही घरवाले जाने कितने नरक भोगे जाते हैं। और फिर ऐक्शन के बाद भी लगना तो यह मेरे सिर ही है। फिर कर लेने दे कलेजा ठंडा।''
''अच्छा फिर ठीक है। इस बारे में तुझे गमदूर से इजाज़त लेनी पड़ेगी। अभी तक अपने दल अलग अलग हैं। अगर वो तुझे इजाज़त देता है तो साझा ऐक्शन कर लेंगे।'' बाबा ने उसूलन बात की।
अजैब जब कोठी पर पहुँचा तो सभी पहले ही वहाँ इकट्ठा हुए बैठे थे। अजैब के घर में हुई घटना का सब को पता था। वे उसी के बारे में बातें कर रहे थे। अजैब ने जाकर गमदूर से इस ऐक्शन की इजाज़त मांगी।
गमदूर कुछ झिझकता था। उसका कहना था कि लहर अपनी-अपनी निजी दुश्मनियाँ निकालने के खिलाफ़ थी। वह लुधियाना से दूर ले जाकर इतनी जानों को खतरे में नहीं डालना चाहता था। उसका एरिया सिर्फ़ लुधियाना था।
''अगर भाई पुलिस को सामने से मुँह तोड़ जवाब नहीं दिया तो उसका मुँह लग जाएगा। फिर तो हरेक खाड़कू के घरवालों के साथ ऐसा ही कुछ हुआ करेगा।'' मीता का तर्क था।
''चलो अच्छा, मुझे छोड़कर तुम सब हाथ खड़े करके वोट डाल लो।'' पहले गुरलाभ देखता रहा पर जब सभी ने हाथ खड़े कर दिए तो उसने भी हाथ उठा दिया। उसे देखकर अरजन ने भी हाथ खड़ा कर दिया।
''चलो ठीक है। मीता इंचार्ज तू होगा। अजैब और तेजा पंडित तेरे साथ होंगे। जब बाबा तुम्हारे संग मिल गया तो सारी पार्टी का इंचार्ज बाबा होगा।''
''वैसे भाई, यह बात करने का सही टाइम तो नहीं है पर मैं फिर भी पूछना चाहता हूँ कि बाबा का और अपना ग्रुप अभी तक एक क्यों नहीं हुआ ?'' तेजा ने स्वाभाविक ही पूछ लिया।
''बस, अब काम करीब ही है। एक दो बातों की अड़चन है। उसके बाद दोनों एक हो जाएँगे।'' गमदूर ने आवश्यकतानुसार सूचना दी।
गुरलाभ ने शुक्र मनाया कि उसे गमदूर ने ऐक्शन में नहीं भेजा। वैसे भी वह कोई बहाना बनाने को फिरता था। पार्टी के साथ मिलकर वह कम ही ऐक्शन में हिस्सा लेता था। उसके तो अपने ही ऐक्शन हुआ करते थे जिन्हें वह बाकी लोगों से छिपाकर किया करता था। वह नित्य नये शिकार खोजता था। नित्य नये घर उजाड़ता था। अरजन के अलावा उसने दो लड़के और अपने संग शामिल कर लिए थे। उन्हें वह सभी के सामने लेकर नहीं आता था। उन्हें वह लूट-खसोट और अगवा जैसे ऐक्शनों से प्राप्त हुए पैसों में से अच्छा पैसा दिया करता था। वे दोनों लड़के - हरी और निम्मा अरजन के दोस्त थे। पहले वे छोटे स्तर के गुंडे थे। अब खाड़कुओं का लेबल लगा कर जाने-माने खाड़कू बन गए।
लहर चलाने वाले लहर चला रहे थे। जूझने वाले जूझ रहे थे। लड़ने वाले मर रहे थे। यह रंगीला ग्रुप अपनी दुनिया में मस्त था। हर रोज़ अगवा करके निर्दोषों के क़त्ल करने और रातों में लोगों की बहु-बेटियों की इज्ज़तों से खिलवाड़ करना, यह इनका प्रमुख काम था। इन्हें रब याद नहीं था। निडर और बेधड़क होकर वे अपने रंगीले ऐक्शन प्रति दिन कर रहे थे। उनको तो यह था कि कोई उनके बारे में पता लगाना तो दूर, उनके बारे में सुराग भी नहीं निकाल सकता। लेकिन यह उनका भ्रम था। नाहर उनके पीछे लगा हुआ था। नाहर ने अपने मुखबिर छोड़ रखे थे। जहाँ कहीं कोई घटना होती, वह अपने मुखबिरों द्वारा सच्चाई का पता लगाने की कोशिश करता। इस काम में एक मुश्किल यह थी कि जिस किसी के घर में भी बहू-बेटी की इज्ज़त से खिलवाड़ किया जाता तो घरवाला चुप रहने में ही भली समझता। पहली बात तो यह कि वह किसी का बिगाड़ कुछ नहीं सकता था, दूसरा यह कि बात को बाहर निकाल कर अपनी इज्ज़त का खुद ही ढिंढोरा पीटने वाली बात थी। नाहर फिर भी निराश नहीं था। अब तक उसे ऐसे कई मामलों का पता चल चुका था। यह काम किया भी कमांडो फोर्स के नाम तले ही जा रहा था। जिसका सीधा अर्थ था, उनकी पार्टी को बदनाम करना। नाहर पक्के सबूत इकट्ठे करके और लोगों की निशानदेही करके उन्हें पार्टी के सम्मुख रखना चाहता था।
मीता और अजैब तैयार थे। उधर बाबा बसंत को भी बता दिया गया कि ऐक्शन साझा होगा। दो आदमी उसने भी संग तैयार कर लिए थे। कुल छह लोगों का ग्रुप बन गया था। इतने व्यक्तियों के बग़ैर बात बनती भी नहीं थी। थानेदार नंद सिंह कोई आम पुलिस वाला नहीं था। इससे पहले वह सैकड़ों लड़कों को मारकर खपा चुका था। उसकी सिक्युरिटी बहुत मजबूत थी। इस ऐक्शन को करने के लिए ज्यादा लड़के रखे गए थे। अँधेरा होते ही तेजा पंडित भी पहुँच गया। मीता, अजैब और तेजा पंडित बाबा द्वारा बताए गए स्थान पर चले गए। उधर बाबा और उसके आदमी भी तैयार थे। सभी बारी बारी से तेल के खाली टैंकर में उतर गए। टैंकर चल पड़ा। अपना सामान उन्होंने पहले ही टैंकर में छिपा दिया था। थानेदार नंद सिंह का थाना किसी बड़े शहर में नहीं था। यह एक छोटी-सी मंडी थी। करीब आधी रात को टैंकर उन्हें किसी ठिकाने पर उतारकर आगे निकल गया।
अगले दिन सभी नहा-धोकर, रोटी-पानी छकने के बाद बैठकर विचार करने लगे। सबसे पहली बात थी - नंद सिंह की दिनभर की व्यस्तता का पता लगाने की। सभी अपनी अपनी सलाहें दे रहे थे। उन्हें नंद सिंह की गतिविधियों का पता लगाना था।
कोई साधु बनकर गया था। कोई पंडित बनकर। कोई लाटरी बेचने वाला बनकर। शाम तक वे अपने अड्डे पर वापस लौट आए थे। बाकी जानकारी उन्हें अपने स्थानीय वसीले से मिल गई थी। नंद सिंह थाने के पास ही रहता था। उसका रिहाइशी क्वार्टर थाने से बमुश्किल सौ गज की दूरी पर था। यही इतनी भर जगह थी जो वह चलकर जाता था। बाकी सारा दिन तो गाड़ियों में ही घूमता था। शाम को भी गाड़ी ही उसे क्वार्टर पर छोड़ आती थी। एक बात अवश्य थी जो बाबा लोगों के हक में जाती थी। वह यह कि इस सौ गज के एरिये में सड़क के दोनों ओर फल व सब्जीवालों की और अन्य रेहड़ी वालों की दुकानें थी। उसके क्वार्टर पर बहुत गारद थी। थाने में काफी पुलिस कर्मचारी थे। इस सड़क पर पहले बायें हाथ पर उसका क्वार्टर आता था, लगभग बीच में जाकर इससे दायें हाथ को एक दूसरी सड़क जाती थी। थोड़ा और आगे जाकर बायें हाथ थाने और क्वार्टर के बीचोबीच दोनों ओर फलों व सब्जीवालों की दुकानों के अलावा कुछ जगहों पर रेहड़ी वाले रेहड़ियाँ लगाकर सामान बेचा करते थे। बीच बीच में कुछ जगहें खाली भी थीं।
अगले दिन खाली पड़ी जगहों पर बाबा और तेजा ने भेष बदलकर फलों की रेहड़ियाँ लगा लीं। अजैब और एक अन्य लड़का मुँह-सिर मुंडवा कर बूट पॉलिश की पेटियाँ लेकर बैठ गए। बाकी दो जनों ने गन्ने का जूस निकालने वाली मशीनें ला खड़ी कीं। जूस वाली मशीन एक थाने की तरफ थी और एक क्वार्टर की तरफ। इन रेहड़ी वालों के पास भी दो दो राइफ़लें गन्ने के बंडलों में मशीनों के नीचे छिपा कर रखी हुई थीं। बाकी सभी के पास अभी छोटे हथियार ही थे। पॉलिश वाले दिन भर बूट पॉलिश की आवाज़ें लगाया करते। फलों वाले फलों की हांक मारते। जूस वालों की मशीन पर बंधा घुंघरू सारा दिन छनकता रहता। थाने के करीब वाली मशीन पर तो पुलिस वालों की लाइन ही नहीं टूटती थी। रात के शराब के टूटे पुलिस वाले तड़के ही जूस पर टूट पड़ते। नंद सिंह सवेरे ब्रेकफास्ट करके सही आठ बजे क्वार्टर से निकलता। पैदल चलकर थाने पहुँचता। उसके संग हमेशा चार बॉडीगार्ड हुआ करते। हफ्ते भर के अन्दर उन्होंने पूरी तरह हालात का नक्शा अपने दिमाग में बना लिया। शक पड़ने के भय से वे अधिक दिन प्रतीक्षा भी नहीं कर सकते थे। आखिरी रात उन्होंने एक बार फिर पूरे प्लैन पर विचार किया।
सवेरे ही अपनी अपनी रेहड़ियों पर मशीनों को ढोते सब अपनी अपनी पोजीशन पर जा खड़े हुए। पौने आठ बजे एक कैंटर बायीं ओर निकलने वाली सड़क पर इस तरफ बैक करके खड़ा हो गया। नंद सिंह घर से चलने लगा तो साहब का फोन आ गया। फोन पर काफ़ी देर बात होने के कारण नंद सिंह लेट हो गया था। फोन रखते हुए नंद सिंह तेजी से चल पड़ा। आज उसके संग बॉडीगार्ड भी तीन थे। एक को साहब का फोन आने पर दौड़ कर किसी काम से थाने जाना पड़ा। आगे नंद सिंह और पीछे तीन बॉडीगार्ड दगड़-दगड़ करते आ रहे थे। वे अभी बाबा की रेहड़ी से दसेक कदम पीछे ही थे कि एक बॉडीगार्ड घबरा कर बोला, ''साहब, वाकी-टाकी तो घर में ही रह गई।''
''क्यों आँखें फूटी हुई थीं ?'' नंद सिंह गुस्से में बोला। सभी एकदम खड़े हो गए। ''जा अब उठा कर ला अपनी माँ को, यहाँ खड़ा क्या.... पकड़ता है।'' वह बॉडीगार्ड पीछे क्वार्टर की तरफ दौड़ पड़ा। शेष तीनों जनें पैर-से मलते फिर थाने की ओर चल दिए। नंद सिंह आगे था, दोनों बॉडीगार्ड पीछे। जैसे ही वे बाबे की रेहड़ी के बराबर आए तो उसने कपड़ा एक तरफ करके राइफ़ल उठा ली। बॉडीगार्ड उसकी रेहड़ी से एक कदम आगे बढ़े तो उसने गोलियों की बौछार करके दोनों को टेढ़ा कर दिया। उसका फायर होने की देर थी कि थाने के पास वाली जूस की मशीन से दोनों लड़कों ने राइफ़लें उठा लीं। थाने पर फायरिंग करते हुए वे उल्टे पैर बाबा की ओर दौड़े। ऐसे ही क्वार्टर के पास वाली जूस की मशीन से दो लड़के क्वार्टस पर फायरिंग करते हुए अपने साथियों की ओर दौड़ पड़े। अंधाधुंध फायरिंग सुनकर थानेवालों ने थाने का गेट बन्द कर लिया। क्वार्टर वालों का किसी भी तरफ से मुकाबला न हुआ। पुलिस वालों को लगा कि पता नहीं कितने खाड़कुओं ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से थाने को चारों ओर से घेर लिया था। सारे लड़के बाबा की रेहड़ी के पास इकट्ठे हुए तो उन्होंने देखा कि नंद सिंह बाड़ में फंसे बिल्ले की तरह सड़क के बीचोबीच बुत बना खड़ा था। इससे पहले की कोई गोली चलाता, अजैब भाग कर उसके आगे जा खड़ा हुआ, ''न भाई, यह मेरा शिकार है।'' इतना कहते ही उसने नंद सिंह की टांगों पर गोलियाँ मारीं। नंद सिंह सड़क पर गिर पड़ा। ''अपने पास ज्यादा टाइम नहीं।'' बाबा ने सभी को अलर्ट किया। अजैब सिंह ने नंद सिंह की छाती पर पैर धर लिया, ''बहुत कर ली लोगों की बेटियाँ-बहनें नंगी। आज हिसाब देने का टाइम आ गया।'' एक एक शब्द अजैब ने चबा कर कहा।
''तू अजै...।'' नंद सिंह 'अजैब' शब्द पूरा भी नहीं कह पाया था कि उसने नंद सिंह के खुले मुँह में गोलियों की बौछार कर दी।
सभी दौड़कर कैंटर में जा चढ़े। उनके चढ़ते ही कैंटर हवा बन गया। आधे घंटे बाद थाने का दरवाजा खुला। सड़क पर दो बॉडीगार्ड और नंद सिंह छलनी हुए पड़े थे। हमलावर किधर से आए और किधर गए, किसी को पता न चला।
थाने के सामने तीन पुलिस मुलाजिमों का मारा जाना छोटी-मोटी घटना नहीं थी। उनमें से एक वो थानेदार भी मारा गया जिसकी सिक्युरिटी के लिए कम से कम पच्चीस-तीस जवान तैनात थे। पुलिस के लिए इससे बड़ी शर्मिन्दगी वाली बात क्या हो सकती थी। पुलिस के सारे मकहमे में पता था कि यह ऐक्शन अजैब ने किया था। नंद सिंह की जगह पर नया थानेदार निरवैर सिंह बग्गा आ गया। उसकी हिस्ट्री भी नंद सिंह जैसे कारनामों से भरी पड़ी थी। उसे हर बात पर यह कहने की आदत थी कि 'ये बाल धूप में बग्गे (सफ़ेद) नहीं किए।' धीरे-धीरे सारे पुलिस महकमे में उसका नाम ही बग्गा पड़ गया। उसे मिले निर्देशों में सबसे पहला निर्देश था - जल्द से जल्द अजैब का खातमा। उसने सभी मुलाजिमों से और इलाके के मुख्बिरों से लम्बी-चौड़ी बात की। 'उसने धूप में अपने बाल बग्गे नहीं किए' वाली अपनी कहावत सच साबित कर दिखाई। सारी बातचीत के बाद वह इस निर्णय पर पहुँचा कि अजैब अपनी परियों जैसी नई नवेली दुल्हन को मिले बग़ैर नहीं रह सकता। वह हफ्ता-दस दिन में ज़रूर चक्कर लगाता था। उसने मन ही मन योजना बनाई। इसी योजना के तहत उसने नंद सिंह के मारे जाने के बाद अजैब के घरवालों की कोई पकड़-पकड़ाई नहीं की। वह तो उसके घर भी नहीं गया। फिर कई दिनों बाद अधिक फोर्स की बजाय सिर्फ़ तीन-चार सिपाहियों को संग ले अजैब के घर गया। पुलिस को देखकर घरवाले डर गए, पर बग्गा सहज रहा। उसने अजैब के बापू से बड़े अदब के साथ बात की। अजैब के बापू ने खाट बिछाई तो वह उस पर बिना किसी हिचकिचाहट के बैठ गया।
''बुजुर्ग़ो, वैसे किसी की मौत पर खुश नहीं होना चाहिए, पर नंद सिंह था इसी काबिल।''
बुजुर्ग़ ने गौर से थानेदार की तरफ देखा।
''वह बन्दा नहीं, कसाई था कसाई। तुम्हारी बहू की उसने कैसे बेइज्ज़ती की थी, मुझे सब पता लग गया है। मुजरिम तुम्हारा लड़का था, उसके संग जो मर्जी करता, पर घरवालों का इसमें क्या कसूर था।'' बग्गा छल-प्रपंची भाषा में बोल रहा था। बुजुर्ग़ को थानेदार धर्मराज की तरह लगा। उधर अन्दर रसोई के मोघों में से से हरमनदीप उनकी ओर देखे जा रही थी।
''सरदार जी, चाय पियोगे ?'' अजैब के बापू ने झुकते हुए पूछा।
''चाय तुम्हारी ज़रूर पीते, पर जो ख़बर है, तुम्हें देने आया हूँ। उस हिसाब से चाय पीते अच्छे नहीं लगते।''
''वह क्या ?''
''रात बहादुरगढ़ के पास पुलिस मुकाबले में तुम्हारा लड़का अजैब मारा गया। यह तो कुदरत का हिसाब है जी, उसने पुलिस वाला मारा, पुलिस ने उसको मार दिया। पर फिर भी आपके जवान लड़के की मौत का मुझे बड़ा अफ़सोस है। आज से तुम्हें पुलिस तंग नहीं करेगी। यह मेरा वायदा रहा।''
खबर सुनकर पूरे टब्बर में कोहराम मच गया। हरमनदीप को यकीन नहीं आया।
''बापू जी, जब तक पक्की तसदीक नहीं हो जाती, आप हौसला रखो। हो सकता है, पुलिस को गलतफहमी हुई हो। सभी हौसला रखो, परमात्मा सुख रखेगा।'' उसने सभी को दिलासा दिया। उसकी बात किसी ने नहीं सुनी। माँ के विलाप ने दीवारें हिला दीं। पल-छिन में हर तरफ बात उड़ गई कि अजैब मारा गया। पूरे इलाके में शोक छा गया। पुलिस ने मुड़ कर अजैब के घर में पैर नहीं रखा।
उधर ऐक्शन करके अजैब और उसके साथी अपने अड्डे पर सही सलामत जा पहुँचे थे। कई दिनों बाद जब उड़ती खबर मिली तो वे हैरान रह गए। 'अरे, पुलिस किसको अजैब समझ बैठी।' किसी को बात का कुछ पता नहीं लग रहा था। यह हर रोज़ ही हुए जाता था कि पुलिस किसी को भी मार कर किसी ओर का नाम दे देती थी। इस बात से अजैब बहुत उदास हो गया। उसकी आँखों के सम्मुख दहाड़े मार-मार कर रोता-कुरलाता परिवार घूमे जा रहा था। खास तौर पर हरमनदीप के विषय में सोच कर वह कुछ अधिक ही बेचैन हो गया। उसने गमदूर से घर का चक्कर लगाने की इजाज़त ले ली। बाबा के अड्डे पर गया। बाबा उसकी बात सुनकर किसी शशोपंज में पड़ गया, ''अजैब मैं कहता हूँ, कुछ दिन देख लेते हैं।''
''तब तक घरवाले मर जाएँगे। खासकर घरवाली तो यूँ ही मर जाएगी।''
“ठीक है, कल रात को उसी पेट्रोल पम्प से कैंटर चलेगा, वहीं आ जाना।” अगली रात में पहले की तरह अजैब को उसके गाँव के खेतों में उतारकर बाबा आगे बढ़ गया। छिपता-छिपाता अजैब गाँव के नज़दीक आया। कुम्हारों के घर की तरफ से दीवार चढ़कर अपने घर में जा उतरा। उसे अपने सामने पाकर पूरे परिवार से अपने खुशी के आँसू संभाले नहीं जा रहे थे। उसकी माँ उसे बार-बार अपनी बाहों में कस रही थी। घरवालों ने बताया कि उसे मरा समझ कर पुलिस ने भी घर में आना छोड़ दिया है। सारे परिवार में बैठकर उसने खुशी-खुशी रोटी खाई। फिर हरमनदीप के साथ उसके कमरे में जा पड़ा। अजैब हरमनदीप के संग प्यार-मुहब्बत की बातें करता हुआ उसकी गोद में सिर रखकर गहरी नींद सो गया। उधर थानेदार बग्गा पूरी फोर्स के साथ गाँव में दाख़िल हुआ। उसकी फोर्स में ट्रेंड कमांडो थे। अचानक हुए खटके के कारण अजैब उछल कर खड़ा हो गया। हरमनदीप का भी कलेजा निकल गया। इतने में स्पीकर पर बग्गे की आवाज़ गूंजी, ''तेरे घर के बाहर चप्पे-चप्पे पर पुलिस खड़ी है। अब तू कहीं नहीं भाग सकता। चुपचाप अपने आप को पुलिस के हवाले कर दे।'' अजैब ने पर्दा हटाकर देखा। घर के आसपास तेज लाइटों के कारण दिन -सा निकला पड़ा था। निकल भागने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता था।
''हाथ खड़े करने का मतलब, जिल्लत, पुलिस टार्चर, साथियों के अड़डों के बारे में बताना। फिर पुलिस के हाथों मौत।'' पल-छिन में ही अजैब बहुत कुछ सोच गया। ''अगर आखिर मरना ही है तो फिर अपने हाथों क्यों नहीं?''
''हम दस तक गिनेंगे, बाहर आ जा। नहीं फिर हम गोली चलाएँगे।'' गोली का नाम सुनकर उसने सिरहाने के नीचे से पिस्तौल उठाया, उसका लॉक खोला। कान के साथ लगाने ही लगा था कि हरमनदीप ने दौड़कर उसे धक्का दिया। अजैब की पुड़पुड़ी तो बच गई, पर पिस्तौल चल गया। गोली दीवार में लगी।
थानेदार बग्गे ने सोचा कि अजैब ने मुकाबला शुरू कर दिया है। इसके बाद बग्गे ने भी मुकाबले वाला ऐक्शन शुरू कर दिया। बाहर से सैकड़ों गोलियाँ छतों से आ बजीं। इस ऐक्शन से अजैब की सोच अचानक पलटा खा गई। उसने खिड़की में से आसमान की तरफ फायर किए। थोड़ी देर के लिए उसने चेतना इकट्ठी की।
''तू इस कोने में से न हिलना, चाहे कुछ भी हो। मैं निकलने की कोशिश करता हूँ।''
''हाय मैं मर जाऊँ, मुझ अकेली को छोड़कर न जाओ।'' हरमनदीप उसके गले से लिपट गई। ''अपना इतना ही मेल था, अच्छा रब्ब-राखा।'' इतना कह कर उसने हरमनदीप को धकेल कर कोने में खड़ा कर दिया। स्वयं दरवाजे में से निकलने की कोशिश करने लगा। इतनी पुलिस देखकर वह समझे खड़ा था कि घेरा तोड़ना कठिन था। जैसे ही उसने दरवाजा थोड़ा सा धकेला तो दरवाजे में से गोलियों की बौछार होने लगी। उसने इधर-उधर गोलियाँ चलाते हुए निकल भागने की बहुत कोशिश की पर कामयाब न हो सका। वह कुहनी के बल चलता हुआ बरामदे में आ गया था जब उसके कंधे पर लगी गोली ने उसकी चीख निकाल दी। उसकी तड़पती चीख सुनकर हरमनदीप उसके ऊपर आ गिरी। उसकी आवाज़ से पुलिस को उसकी पोजीशन का पता चल गया। अगले पल, दोनों पति-पत्नी पर गोलियों की बारिश होने लगी। पुलिस वाले और घंटाभर गोलियाँ चलाते रहे। कहीं तड़के जाकर पुलिस ने फायरिंग बन्द की। दिन चढ़ते ही पुलिस का एस.एस.पी. आ पहुँचा था। थानेदार उसे संग लेकर अन्दर का माहौल दिखाने लगा। अजैब और हरमनदीप की लाशें बरामदे में एक दूसरे के ऊपर पड़ी थीं। अगले कमरे में अजैब के माता-पिता की लाशें पड़ी थीं। एक तरफ़ वाली बैठक में अजैब के बड़े भाई, उसकी घरवाली और बच्चे की लाशें पड़ी थीं। हरेक के पास कोई न कोई हथियार फेंका हुआ था ताकि देखने वाले को लगे कि वह आगे से मुकाबला कर रहा था।
''मिस्टर निरवैर सिंह, तूने अजैब आतंकवादी को मारकर अच्छा काम किया है। पर सिविल कैज्युअल्टीज़ बहुत ज्यादा हैं।'' एस.एस.पी. अन्दर ही अन्दर उदास हो गया। लेकिन थानेदार को उसकी बात समझ में नहीं आई।
''सर, मैंने जाल ही ऐसा बिछाया था। ये बाल मैंने यूँ ही धूप में तो बग्गे नहीं किए।''
थानेदार बग्गा अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरता अपनी बहादुरी बता रहा था।
(जारी…)
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