Sunday, October 3, 2010

धारावाहिक उपन्यास(अन्तिम किस्त)



आज अपने उपन्यास ‘बलि’ की आख़िरी किस्त को ब्लॉग पर प्रकाशित करते हुए मुझे बहुत खुशी महसूस हो रही है कि पहले से सुनिश्चित किए गए समय के भीतर यह काम पूरा हो गया। साथ ही, मैं उन सभी पाठकों और मित्रों का हृदय से आभारी हूँ जो कि इस उपन्यास से जुड़ चुके हैं, लगातार इसे पढ़ते रहे हैं और अपनी अमूल्य राय से मुझे अवगत कराते रहे हैं। पाठकों की राय मेरे लिए बहुत कीमती है। यह पाठकों की ओर से मेरे इस उपन्यास को मिला सार्थक हुंगारा ही है जो कि मुझे आगे और बहुत कुछ लिखने की प्रेरणा देता है। इसके अतिरिक्त मैं हिंदी के सुपरिचित कथाकार, कवि और अनुवादक तथा अपने परम मित्र सुभाष नीरव जी का भी बहुत धन्यवाद करता हूँ जिनके प्रयत्नों से मेरे उपन्यास ‘बलि’ का हिंदी में अनुवाद संभव हो सका और आप सब तक पहुँचा। पाठकों से मेरी विनती है कि वे मेरी अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए इस ब्लॉग को पढ़ना जारी रखें और समय-समय पर अपनी बेबाक और अमूल्य राय देकर मेरा हौसला बढ़ाते रहें। मेरा नया लिखा उपन्यास ‘होनी’ शीघ्र ही पंजाबी में प्रकाशित होने जा रहा है जिसका हिंदी अनुवाद लेकर मैं अपने इसी ब्लॉग के माध्यम से फिर से आप लोगों के बीच हाज़िर होऊँगा।
-हरमहिंदर चहल



बलि
हरमहिंदर चहल
(गतांक से आगे...)

चैप्टर- 23(अन्तिम किस्त)

ज्यों ही सूरज छिपा और अँधेरा होने लगा तो हर तरफ हलचल होने लगी। नहरी कोठी रतनगढ़ में आज विवाह जैसा माहौल था। छह-सात लड़के वहाँ पहले ही थे। रसोइये, और आने वाले लड़कों के लिए खाना तैयार किए जा रहे थे। अच्छा-खासा अँधेरा होने पर एक-एक करके लड़के आने शुरू हो गए। कोई टिब्बे की तरफ से आ रहा था। कोई पगडंडी से चलकर आ रहा था। कोई किसी खाल के साथ-साथ आ रहा था। कोई खेतों में से होकर सीधा ही चला आ रहा था। जैसे जैसे लड़के आ रहे थे, कोठी में रौनक बढ़ती जा रही थी। ऊपर चौबारे में पहरे पर दो लड़के बैठे थे। ग्यारह बजे तक गुरलाभ को छोड़कर सभी लड़के हाज़िर हो गए। जो भी आता जा रहा था, साथ के साथ रोटी खाकर एक तरफ होता जा रहा था। ग्यारह बजे तक सभी लड़के रोटी खा चुके थे। सभी बीच वाले कमरे में बिछी दरियों पर बैठे आपस में बातचीत कर रहे थे। मीटिंग शुरू होने में एक घंटा शेष था। गुरलाभ की इमेज सभी के दिलों में एक हीरो की थी, जिसने आज तक पुलिस को कभी भनक तक नहीं पड़ने दी। अब दसेक दिनों से खाली बैठे लड़कों के अन्दर नया जोश उबाले ले रहा था। हर कोई आज की मीटिंग में होने वाले नये एक्शनों की रूप-रेखा सुनने के लिए उतावला था। सभी नये एक्शन को अंजाम देने के लिए बिलकुल तैयार थे। उधर मंत्री जी भाई केरे तीन कोणी पर पहुँच चुके थे। ग्यारह बजते ही पुलिस की गाड़ियों के वायरलेस सैटों पर एस.पी. रणदीप का आर्डर आया, ''मूव करो।'' गाड़ियाँ आहिस्ता आहिस्ता आगे बढ़ने लगीं। हर पंक्ति के आगे एक बुलटप्रूफ ट्रैक्टर था। उसके पीछे अन्य गाड़ियाँ। ट्रैक्टर के शोर में गाड़ियों का पता ही नहीं चल रहा था। समय साढ़े ग्यारह से ऊपर होने जा रहा था। गुरलाभ अभी तक नहीं आया था। कुछेक लड़कों को चिंता सताने लगी। ''वह तो टाइम के टाइम ही पहुँचता है।'' किसी के इतना कहने पर लड़के फिर से बातों में मशगूल हो गए। ऊपर पहरे वालों ने रतनगढ़ की ओर से कच्चे राह पर ट्रैक्टर आता देखा। अँधेरे में दिखना तो क्या था, उसके शोर से ही पता चला कि ट्रैक्टर कच्चे रास्ते पर से होकर कोठी के बिलकुल सामने नहर की दूसरी तरफ आ खड़ा हुआ। ''शायद कोई खेत वाला है।'' पहरेवाले लड़के बेफिक्र थे। टीलों की तरफ से आए ट्रैक्टर ने टीले पर चक्कर लगाते हुए यह भ्रम पैदा किया कि कोई ज़मीन जोत रहा था। वह ट्रैक्टर और उसके पीछे की गाड़ियाँ भी शीशम के पेड़ों के दूसरी तरफ कोठी के नज़दीक आने लगीं। नहर के ऊपर से आता ट्रैक्टर झाल के पास आकर रुक गया। ''शायद कोई झाल का पानी देखने आया है।''
जब एक ट्रैक्टर डिफेंस रोड की ओर से आकर नहर की पटरी पर चढ़ा तो पहरे वाले लड़कों को लगा कि शायद गुरलाभ आ रहा था। बारह बज गए थे। अब तक तो गुरलाभ को आ जाना चाहिए था। ट्रैक्टर पीछे मोघे के पास ही खड़ा हो गया था। गाड़ियों में से उतर कर पुलिस वालों ने छोटी-छोटी पंगडंडियाँ और छोटे रास्ते कवर कर लिए थे। सवा बारह बजे के करीब लड़के विचलित होने लगे। 'गुरलाभ क्यों नहीं आया ?' हर एक के जेहन में यही सवाल था। 'शायद किसी वजह से लेट हो गया हो। शायद गाड़ी खराब हो गई हो।' 'चलो, कुछ देर और इंतज़ार करते हैं।' सबके अपने-अपने विचार थे। समय धीमे-धीमे आगे सरक रहा था। दीवार पर लगी बड़ी घड़ी की टिक-टिक सबके दिलों पर हथौड़े की तरह बज रही थी। बातचीत बन्द थी। सभी अपने अपने ख़यालों में मग्न थे। एक बजे घड़ी ने एक घंटी बजाई तो सभी चौंक कर घड़ी की ओर देखने लगे। सबसे सीनियर लड़का बख्शीश खड़ा हुआ, ''तुम लोग बैठो, मैं चौबारे पर जाकर पता लगाता हूँ।'' वह आहिस्ता-आहिस्ता अन्दर की सीढ़ियाँ चढ़ता ऊपर चौबारे पर पहुँचा। पहरेवाले लड़के भी सहमे बैठे थे।
''क्यों भाई, गुरलाभ आया नहीं अभी ?'' जानते हुए भी उन्होंने नीचे से ऊपर आए बख्शीश से पूछा।
''नहीं, वह तो अभी तक नहीं आया। आसपास सब कुछ ठीक है ?''
''पहले तो ठीक ही लगता था, पर अब शक-सा पड़ रहा है।'' एक पहरेदार बोला।
''वह कैसे ?''
''चार दिशाओं से ट्रैक्टर आकर कोठी से कुछ दूर रुक गए हैं।''
''कहीं भैण.... बुलटप्रूफ़ ट्रैक्टर तो नहीं।'' मन में सोचते बख्शीश ने आस पास अँधेरे में देखने की कोशिश की। उसे कुछ नहीं दिखा। चारों तरफ श्मशान जैसी खामोशी थी।
''तुम चारों तरफ ध्यान रखो।'' इतना कहकर वह नीचे उतर गया। उसे नीचे आया देख सभी लड़के खड़े हो गए।
''कैसे है ?''
''यार कुछ पता नहीं लगता, चारों तरफ घुप्प अँधेरा पसरा पड़ा है।''
''गुरलाभ भी अभी तक आया नहीं।'' पहरेदारों द्वारा बताई ट्रैक्टरों वाली बात वह बीच में ही दबा गया। यह सीनियर लड़का बख्शीश समझदार था। समय से पहले भगदड़ मचाना ठीक नहीं समझता था। इस वक्त कमांड उसके हाथ में थी। गुरलाभ का न आना उसे काफी चुभ रहा था। दो ही कारण हो सकते थे। या तो उसे पुलिस ने पकड़ लिया, या फिर गद्दार निकला। वैसे यह बात उसके मन को जचती नहीं थी, पर वह समझता था कि बात कोई भी हो, पर पुलिस आज यहाँ ज़रूर पहुँच सकती थी। वह सारी स्थितियों के बारे में सोचते हुए अन्दर ही अन्दर योजना बनाने लगा। अभी उसने सभी को नीचे कमरे में ही बिठा रखा था।
रेस्ट हाउस में इकट्ठा हुई इस भीड़ ने सुखचैन की नींद उड़ा रखी थी। 'ये इतने जने आज यहाँ क्या कर रहे हैं ?' ऐसी बातें सोचता वह कोठी में पड़ा करवटें बदल रहा था। नींद उससे कोसों दूर थी। उधर दिल्ली एअरपोर्ट पर खड़ा एअर कैनेडा का जहाज उड़ने के लिए तैयार खड़ा था। अभी-अभी हुई उदघोषणा के अनुसार अगले कुछ मिनटों में जहाज रवाना होने वाला था। सभी को सीट बैल्टें बाधंने की हिदायत हो चुकी थी। बख्शीश पुन: ऊपर चौबारे में गया। उसने आसपास देखा। उसे दूर उल्टी दिशाओं से कोठी की तरफ आती रोशनियाँ दिखाई दीं। शायद कई वाहन थे। कोठी से काफी पीछे ही अचानक दोनों वाहन लाइटें बुझा कर खड़े हो गए। उसका शक यकीन में बदलता जा रहा था। वह तेजी से नीचे उतरा। अधिक से अधिक असला उठवाकर चौबारे में ले गया। सभी लड़कों को पोजीशन लेने के बारे में समझाने लगा।
''क्यों ? कोई खतरा लगता है ?'' कोई फिर बोला।
''हो सकता है। नहीं भी। अभी पूरा पता नहीं। पर हमें होशियार रहना चाहिए।'' उसने पूरब दिशा वाला रास्ता निकलने के लिए चुना। चौबारे पर से इसी तरफ ज्यादा फायरिंग करने की स्कीम बनाई गई।
''देखो, अगर पुलिस का घेरा पड़ गया है तो डट कर मुकाबला करना चाहिए। तभी बच सकते हैं। नहीं तो चूहों की तरह मारे जाएँगे।'' बख्शीश हल्ला-शेरी दे रहा था।
''चौबारे वाले पूरब वाला हिस्सा कवर करेंगे। दिन चढ़ने से पहले सभी उसी फायरिंग के कवर के नीचे से पूरब दिशा से भाग निकलने की कोशिश करेंगे।'' वह हिदायतें दे ही रहा था कि तभी दीवार वाली घड़ी ने दो बार टर्न-टर्न करके दो बजने का संकेत दिया। दो बजते ही एअर कैनेडा के जहाज ने टर्मिनल छोड़ा। धीरे धीरे चलता रन-वे की ओर जाने लगा। इधर बख्शीश को शत-प्रतिशत विश्वास हो गया था कि कोठी को पुलिस ने घेर लिया है। वह बाकी लड़कों को हौसला देता एक्शन के बारे में समझा रहा था।
''हम बीस जने हैं। पुलिस की ऐसी-तैसी कर देंगे। तुम बस हौसला नहीं छोड़ना।'' इन लड़कों में से दो-चार को छोड़कर बाकी लड़कों ने किसी भी मुकाबले में हिस्सा नहीं लिया था। इसलिए लगभग सभी डरे हुए थे।
अपने क्वार्टर के अन्दर पड़ा सुखचैन भी आस पास हो रहे खड़के के कारण भयभीत हुआ पड़ा था। उसके कान बाहर होने वाले खड़के की तरफ ही लगे थे। एअर कैनेडा का जहाज पूरी स्पीड से रन-वे पर दौड़ा। फिर धीमे से अगला हिस्सा ऊपर उठाकर आकाश की ओर चढ़ गया।
कोठी को घेरे खड़ी पुलिस ने चारों दिशाओं से ट्रेसर राकेट छोड़े। सारा इलाका बिजली के चमकने की तरह रोशनी में नहा गया। ट्रेसरों की रोशनी में पीछे बैठे सियाने पुलिस अफ़सरों ने रेस्ट हाउस का पूरा जायज़ा ले लिया। चौबारे में बैठे लड़कों की पहले तो इतनी रोशनी देखकर यूँ ही आँखें चुंधिया गईं। फिर ट्रेसरों की घटती रोशनी में उन्हें आस पास के दरख्त भी पुलिस की गाड़ियाँ ही प्रतीत हुए। उन्हें लगा जैसे आस पास पुलिस ही पुलिस हो। खिड़कियों में से होकर जब इतनी रोशनी ने अन्दर प्रवेश किया तो सुखचैन ने ऊपर लिया खेस उतारकर फेंक दिया। 'जिस बात से रोज़ डरता था, वही होने वाली है।' वह भी समझ गया था कि पुलिस का घेरा पड़ चुका था। वह नीचे गद्दा बिछाकर एक कोने में सहमकर बैठ गया।
चौबारे वाले अनजान लड़कों ने ट्रेसर की रोशनी से घबरा कर फायरिंग शुरू कर दी। वे लगातार पूरब दिशा की ओर फायरिंग किए जा रहे थे। बख्शीश ने सिर पकड़ लिया, ''कर दी बेवकूफों वाली बात।'' उसने सीढ़ियों में खड़ा होकर ऊपर वाले लड़कों को फटकारा, ''फायरिंग बन्द करो।'' एक बार तो लड़कों ने गोलीबारी रोक दी। बख्शीश यह समझे खड़ा था कि ये तो सभी अनजान लड़के थे। रणदीप ने पूरब की ओर से फिर ट्रेसर चलाये। चौबारे वाले लड़कों ने फिर उधर फायरिंग शुरू कर दी। रणदीप ने अंदाजा लगा लिया कि ये पूरब की तरफ भागने की कोशिश करेंगे। चौबारे वालों ने राकेट छोड़ा जिसने ट्रैक्टर टेढ़ा कर दिया। नुकसान कुछ नहीं हुआ। ड्राइवर बाहर आ गया। उस ट्रैक्टर की जगह पीछे से आए ट्रैक्टर ने ले ली। बख्शीश ने ऊपरवालों की मूर्खता का फायदा उठाना चाहा। उसने उन्हें फायरिंग का आदेश दिया। वे पूरब की ओर अंधाधुंध गोली चलाने लगे। प्रत्युत्तर में पुलिस भी गाली चलाने लगी। बख्शीश नहर की पगडंडी से होकर पूरब वाले घेरे में से निकलने की कोशिश करने लगा। वह जैसे ही पुलिया के करीब पहुँचा, तभी कमांडो की गोली उसके माथे में बजी। पिछले लड़के लीडर रहित हो गए थे। वे बिना सोचे-समझे इधर-उधर गोली चला रहे थे। पुलिस उनकी रेंज से बाहर थी। रणदीप की योजना था कि अधिक से अधिक लड़के जीवित पकड़े जाएँ। इसलिए वह दूर एक टीले पर बैठा लड़कों की अफरा-तफरी देख रहा था। ऊपरवाले जिधर गोली चला रहे थे, रणदीप ने उनके दायीं और बायीं ओर से पुलिस को गोली चलाने के आदेश दिये। लड़के सामने तीन दिशाओं में पुलिस की ओर गोलीबारी करने में व्यस्त हो गए। पीछे टीलों की तरफ खड़े कमांडों शीशम के दरख्तों में से होते हुए रेस्ट हाउस की दीवारों तक पहुँच गए। उन्होंने एक ही हल्ले में चौबारे पर हैंड ग्रिनेड फेंके। एक बहुत बड़ा धमाका हुआ और चौबारा सभी लड़कों सहित नीचे आ गिरा। अन्दर आग लग गई। अन्दर से जान बचाकर बाहर की ओर भागते छह लड़कों को कमांडों ने दबोच लिया। शेष या तो गोलीबारी में मारे गए या फिर चौबारे की छत के नीचे दबकर मर गए। सवेरे छह बजे के करीब कमांडों ने कामयाब आपरेशन की सूचना रणदीप को दी। रणदीप ने आगे मंत्री जी को। मंत्री जी ने प्रत्युत्तर में कड़कते स्वर में आदेश दिया, ''मुकाबला जारी रखो और मेरे अगले आर्डर तक गोली चलाते रहो।''
मंत्री जी के आर्डर तेजी से घूम रहे थे। रतनगढ़ के आसपास के पन्द्रह-बीस गाँवों के स्पीकरों पर सवेरे ही इस मुकाबले की खबर प्रसारित कर दी गई थी। उधर जाने वाले सभी रास्ते पुलिस ने बन्द किए हुए थे। रणदीप मंत्री जी के कहने के अनुसार अपनी कार्रवाई किए जा रहा था। एक तरफ बैठी पुलिस पार्टी हवा में गोलियाँ चलाये जा रही थी। रणदीप का ख़ास अफ़सर रेस्ट हाउस में दाख़िल होकर अपनी कार्रवाई कर रहा था। उसके संग सिर्फ़ उसके गिने चुने आदमी थे। उन्होंने पकड़े गए लड़कों की निशानदेही पर कच्ची जगह खोदकर माया के ढेर बाहर निकाले। रणदीप तक पहुँचाए। फिर नीचे दबा असला निकाला। इधर-उधर बिखरा असला एकत्र किया।
करीब दस बजे रणदीप रेस्ट हाउस पहुँचा तो आग से जली चौदह लाशें एक तरफ पड़ी थीं। छह लड़के रस्सों से बांधकर उनके बराबर में उल्टे लिटा रखे थे। शेष लगभग पन्द्रह लड़कों को रस्सों से बांधकर दूर ओवरसियर के क्वार्टर की तरफ उल्टा लिटा रखा था। रणदीप नाक पर रूमाल रखकर इधर-उधर घूम रहा था। उसे तसल्ली थी कि बग़ैर किसी नुकसान के उसने एक सफल आपरेशन किया था। किसी भी आतंकवादी को भागने नहीं दिया था। उसने अपने खास अफ़सर को बुलाकर जिन्दा पकड़े गए छह लड़कों को उसके हवाले करके किसी खास जगह पर भेज दिया। रिपोर्ट बनाई गई कि कुल चौदह के चौदह आतंकवादी मार गिराये गए हैं।
''ये कौन हैं ?'' उसने अपने खास अफ़सर से पूछा।
''ये जी इस कोठी के मुलाज़िम हैं।''
रणदीप ने देखा कि इन सभी पर पुलिस की पिटाई हो चुकी थी। वह एक-एक को देखता हुआ कतार के आख़िरी सिरे पर पहुँचा। आख़िरी व्यक्ति की ओर उसने ध्यान से देखा। रणदीप ने नीचे झुककर उसे सीधा किया। उसके मुँह से खून बह रहा था। माथे पर भी पुलिस की बन्दूक का बट बजा हुआ था। उसे देखते ही रणदीप के अन्दर एक बिजली-सी कौंधी।
''तू सुखचैन तो नहीं ? मलकपुर वाला।''
नीचे पड़े हुए सुखचैन ने सिर हिला कर हामी भरी।
''भैण... ने तुझे भी नहीं बख्शा।'' रणदीप ने पता नहीं किसे सुना कर कहा। उसका इशारा गुरलाभ की तरफ था। सुखचैन की दयनीय हालत देखकर उसके दिल के किसी कोने में से हॉस्टल वाला रणदीप जाग उठा।
''इसे खोलो, क्वार्टर के अन्दर ले चलो। मुझे पूछताछ करनी है।''
हुक्म की पालना हुई। सुखचैन के क्वार्टर के अन्दर रणदीप कुर्सी पर बैठा था। सुखचैन गिरता-पड़ता नीचे ज़मीन पर ही बैठ गया।
''सुखचैन, प्लीज, चारपाई पर बैठ।'' पुराने दिन याद करते हुए सुखचैन को देखकर रणदीप का दिल पसीज उठा।
''नहीं सर, मैं ठीक हूँ।''
''नहीं सुखचैन तू उठ।'' आगे बढ़कर रणदीप ने सुखचैन को उठाकर चारपाई पर बिठा दिया।
''सुखचैन, अगर मुझे पता होता कि इस कोठी में तू है तो तुझे ज़रूर पहले ही बाहर निकाल लेता।'' पुराना लिहाज याद करते हुए रणदीप को अफ़सोस हो रहा था।
रणदीप उठकर आँगन में टहलने लगा। वह दिल से सुखचैन की मदद करना चाहता था। हालात के मुताबिक यह काम बहुत कठिन था। सुखचैन पर खाड़कुओं को पनाह देने का चार्ज़ लगना था। उसने टहलते हुए ही मन में कोई निर्णय लिया। वह वापस सुखचैन के पास आ गया।
''सुखचैन, तू आजकल के हालात के बारे में तो जानता ही है। मैं तुझे इस केस में से बचाना चाहता हूँ।''
सुखचैन ने आशा भरी नज़रों से रणदीप की ओर देखा।
''सुखचैन, तुझे कुछ खर्च करना पड़ेगा। फिर ही इस केस से बच सकेगा।''
''सर, जैसे भी हो करो प्लीज।'' सुखचैन को उम्मीद-सी होने लगी।
''तो सुन फिर। यहाँ से मैं तुझे निकाल देता हूँ। बाद में तू जैसे-तैसे बाहर के किसी मुल्क में निकल जा। क्योंकि यहाँ तो तुझे अब पुलिस जीने नहीं देगी।''
''ठीक है सर।''
रणदीप ने सुखचैन को अपने संग लेकर उसका कंधा दबाया। अपने ख़ास अफ़सर को आवाज़ लगाई। उसने दौड़कर अन्दर आकर सलूट मारा।
''जी सर।''
''यह मेरा पुराना दोस्त है। इसको यहाँ से निकाल दे। बेचारा बेकसूर है। जल्दी कर...।'' अफ़सर ने जीप बैक की। सुखचैन को पीछे बिठाया। सुखचैन के बताये अनुसार साथ ही लगते राजस्थान के किसी गाँव में छोड़ आया। फिर सभी मरे हुए और जिन्दा पकड़े हुए लड़कों को ट्रक में लादा और भाई केरे की तीन कोणी की तरफ ले चले। यहाँ मंत्री जी ने अपना अड्डा जमा रखा था। टी.वी. पर लगातार ख़बर चल रही थी कि मंत्री जी अपनी देख-रेख में खाड़कुओं के एक बड़े ग्रुप को घेरा लगाए बैठे हैं जिसने पिछले दो महीनों में अबोहर इलाके में आतंक मचा रखा था। मंत्री जी के आसपास पन्द्रह-बीस गाँवों की पंचायतें बैठी थीं। वह बीच में कुर्सी डाले बैठे थे।
तीन कोणी से पीछे पुलिस का ट्रक रुका। चौदह लाशें सड़क के किनारे एक कतार में रख दी गईं। कोठी के मुलाजिमों को उसी तरह बांधे हुए सामने वाले पेट्रोल पम्प पर बिठा दिया। आगे तीन कोणी पर जाकर रणदीप ने मंत्री जी को सलूट मारा।
''सर, एक्शन इज़ ओवर।''
मंत्री जी ने पुलिस वालों को शाबाशी दी। पंचायतों के सामने उनकी प्रशंसा के पुल बांधे। फिर रणदीप पंचायतों से मुखातिब हुआ, ''सभी गाँवों की पंचायतें लाशों को गौर से देखें। अगर किसी की पहचान होती है तो बताओ।'' पंचायतों के लोग नाक ढक कर जली हुई लाशों के चक्कर काटते रहे पर किसी की पहचान न हो सकी। उन्होंने लाशों को दुबारा ट्रक में फेंककर पोस्ट मार्टम के लिए शहर के अस्पताल भेज दिया। पंचायतों के कुछ बुजुर्ग लोग मंत्री जी से मुखातिब हुए।
''इन गरीबों को क्यों पकड़ा है जी ?'' उनका संकते नहरी विभाग के कर्मचारियों की ओर था।
''इन पर खाड़कुओं को पनाह देने का इल्ज़ाम है।'' कोई पुलिस वाला बोला।
''ये गरीब अपना टाइम मुश्किल से बिताते हैं। ये किसी को क्या पनाह देंगे।''
''उन्होंने तो सरकारी रेस्ट हाउस पर कब्ज़ा किया हुआ था। इसमें इन लोगों का क्या कसूर है।''
लोगों में खुसुर-फुसुर होने लगी तो मौके की नब्ज़ पकड़ते हुए मंत्री जी ने लोगों को शान्त किया और बोले, ''अगर तुम लोग इनकी गारंटी लो तो इन्हें छोड़ देते हैं।''
''गारंटी की क्या है जी, ये लोग तो हमारे बीच में ही रहते हैं।''
''हर एक गाँव का सरपंच इनकी बेगुनाही के बारे में आगे आकर इस कागज पर दस्तख़त कर दे।''
रणदीप ने नहरी विभाग के कर्मचारियों की बनाई सूची और अन्य जानकारी मंत्री जी के सामने रख दी। आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़कर सभी सरपंचों ने दस्तख़त कर दिए। पुलिस वालों ने कोठी के कर्मचारियों को रिहा कर दिया। रणदीप ने मंत्री जी के आगे से पेपर उठाकर और उन्हें फाइल में डालते हुए शीघ्रता से उन सभी कर्मचारियों के ऊपर सुखचैन सिंह चट्ठा का नाम लिख दिया और इसी प्रकार वह भी इन सबके साथ बेगुनाहों की सूची में आ गया।
मंत्री जी की हिदायत पर उनकी पार्टी के वर्कर पूरी तैयारी के साथ उनका शहर में इंतज़ार कर रहे थे। मंत्री जी खाड़कुओं का सफाया करके ज़िले की सारी पुलिस के आगे-आगे शहर में दाख़िल हुए। सारा शहर हाथों में मालाएँ लिए उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। 'मंत्री जी ज़िन्दाबाद !' के नारों से शहर गूंज उठा। पूरे इलाके का बच्चा-बच्चा मंत्री जी का धन्यवादी था जिन्होंने विदेशी दौरे से लौटते ही खाड़कुओं का खात्मा करवा दिया था। दो दिनों में ही सारे इलाके को खाड़कुओं के भय से मुक्त कर दिया गया। हर तरफ अपनी जय-जय देखते हुए मंत्री जी मुख्यमंत्री की कुर्सी की तरफ ललचाई नज़रों से देखने लगे।
रणदीप को प्रमोट करके डी.आई.जी. बना दिया गया था। उसने नई जगह बार्डर रेंज का चार्ज संभाल लिया था।
सुखचैन गाँव में पहुँचा तो उसने घर में छाये मातम की तरफ अधिक ध्यान नहीं दिया। उसने अपने माँ-बाप को एक तरफ ले जाकर सारी बात समझा दी। सुखचैन के पिता ने हफ्ते-दस दिन में दो किल्ले ज़मीन बेचकर पैसों का प्रबंध कर दिया। कुछ पैसे सुखचैन के पास जमा थे। पैसों का प्रबंध करके वह दिल्ली चला गया। पैसे और पासपोर्ट लेकर एजेंट ने सुखचैन को अन्य लड़कों के संग किसी होटल में ठहरा दिया। उससे करीब दो सप्ताह बाद सुखचैन दिल्ली से थाईलैंड जा रहे एअर फ्रांस के हवाई जहाज में बैठा था।
-समाप्त-