Sunday, December 5, 2010

‘बलि’ पर लेखकों/विद्वानों के विचार (6)



'बलि'एक पढ़ने और समझने योग्य रचना
-डॉ. सुरजीत बराड़(पंजाबी लेखक)

हरमहिंदर चहल का यह पहला उपन्यास जब मुझे कथाकार जिंदर ने पढ़ने के लिए भेजा तो मैंने इस उपन्यास पर अधिक ध्यान न देकर इसे अपनी लाईब्रेरी में संभाल कर रख दिया था। कारण- एक तो यह उपन्यास चहल का पहला उपन्यास था, दूसरा इस उपन्यासकार के विषय में सुना भी नहीं था, न ही कोई इस लेखक के कार्यों का ज्ञान था, तीसरा यह कि लेखक प्रवासी था। लेकिन जिंदर के ज़ोर देने पर मैंने इस उपन्यास को न चाहते हुए भी पढ़ना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे उपन्यास का पाठ करता गया, वैसे-वैसे मैं इस उपन्यास से जुड़ता चला गया। कमाल की बात तो यह है कि उपन्यासकार चहल का यह उपन्यास (पढ़ने/परखने के बाद मैंने जो अनुभव किया) लेखक का प्रथम उपन्यास लगता नहीं। क्योंकि इस उपन्यास में औपन्यासिक गुण मौजूद हैं। पहली बात, इस उपन्यास में जबर्दस्त रवानी और रोचकता है। रवानी और रोचकता के अतिरिक्त यह उपन्यास भावपूर्ण भी है। उपन्यास की भाषा-संरचना ही नहीं, उपन्यास की पाठ-संरचना भी सुडौल है। उपन्यास की शैली भी ध्यान आकर्षित करती है। इस उपन्यास में कई कलात्मक विधियों का प्रयोग किया गया है। गतिशील यथार्थ की विभिना जुगतें ( आलोचनात्मक, प्रश्नात्मक, संकेतात्मक, प्रतीकात्मक और तुलनात्मक आदि) के सुप्रयोग से यह उपन्यास सहज औत कला के तौर पर उत्तम श्रेणी ग्रहण करता है। उपन्यास का आकार न लघु है, न दीर्घ है। औपन्यासिक ज़रूरतें, स्थितियाँ- परिस्थितियाँ- इन सबके अनुसार ही उपन्यास को विस्तार दिया गया है। आश्चर्यजनक पहलू यह है कि यह समूचा उपन्यास तरतीबबद्ध है, कोई अध्याय आगे-पीछे नहीं, कोई अध्याय अनावश्यक नहीं। ‘आतंकवाद और पंजाब संकट’ उपन्यास की केंद्रीय कथा है। इस कथा को उत्तेजित करने और उसे गति देने के लिए विभिन्ना लघुकथाएँ भी बुनी गई हैं। उपन्यास का शीर्षक ‘बलि’ किसी एक पात्र को रेखांकित नहीं करता वरन पंजाब (अथार्त पंजाबी लोगों) और एक व्यवहार को दर्शाता है। चहल का यह प्रथम उपन्यास जो कला पक्ष के तौर पर पूरी तरह कसा हुआ नहीं है, फिर भी इस उपन्यास को पहले दर्जे के अंक दिए जा सकते हैं।

यह उपन्यास इस पहलू से भी महत्वपूर्ण है कि पंजाबी उपन्यास क्षेत्र में कोई ऐसा विशुद्ध उपन्यास दृष्टिगोचर नहीं होता जो पंजाब संकट और आतंकवाद पर केन्द्रित हो। बेशक यह बात ठीक होगी कि कुछ पंजाबी उपन्यासों में आतंकवाद के कुछ भावुक दृश्यों(वह भी सतही) को उभारा अवश्य गया है, परन्तु ऐसे उपन्यास पंजाब संकट और आतंकवाद लहर की बारीक और महीन तांतों को पकड़ने में असमर्थ रहे हैं। पंजाबी के वरिष्ठ उपन्यासकारों ने भी इस आवश्यक और दुर्गम कार्य को हाथ लगाने में गुरेज ही किया है। वास्तव में यह एक संवेदनशील मसला भी था जिस कारण हमारे उपन्यासकारों ने इस मसले को समझने और रचना में दर्ज़ करने की कोशिश ही नहीं की।
हरमहिंदर चहल इस पक्ष से बधाई का पात्र है। सो, ‘बलि’ उपन्यास पंजाबी में ऐसा पहला उपन्यास बन गया है जो विशुद्ध पंजाब संकट और आतंकवाद की उत्पत्ति के कारकों की तलाश ही नहीं करता बल्कि इस संकट और लहर के परिणाम-स्वरूप उपजे विभिना मसलों और संकटों को अपने कलेवर में लेता है। उपन्यास में दर्ज़ एक अहम पात्र गुरलाभ है जो विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों से डरता नहीं, वरन उनका दिल से मुकाबला करता हुआ मंजिल की ओर बढ़ता चला जाता है। यह नायक ज़िन्दगी में संघर्ष का नायक है। ऐसे नायक की पंजाबी उपन्यासों में कमी है। उपन्यास में विभिन्न यथार्थपरक घटनाओं, स्थितियों-परिस्थितियों को रेखांकित करने के पीछे उपन्यासकार का एक खास मनोरथ नज़र आता है। यह उपन्यास इस पक्ष से भी मार्मिक और गौरतलब है कि उपन्यास में आवश्यकतानुसार रोमांटिक पल भी उपलब्ध हैं। असल में उपन्यास प्यार के मानवीय जुज़, प्रवृति और सरोकार को स्थापित करने के लिए यत्नशील है। प्रेम, सांझ, आपसी व्यवहार और भाईचारे के संबंध ही इस उपन्यास का आधार हैं। ऐसे सरोकारों से ही समाज सुन्दर बन सकता है। आतंकवादी कार्यों से तो समाज के अन्दर अराजकता फैलती है। अंत में मेरी धारणा है कि ‘बलि’ उपन्यास एक पठनीय ही नहीं, बल्कि समझने और ग्रहण करने योग्य उपन्यास भी है।
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