Sunday, May 16, 2010

धारावाहिक उपन्यास



बलि
हरमहिंदर चहल
(गतांक से आगे...)

चैप्टर- 10

पहले तय किए गए प्रोग्रोम के अनुसार कालेज लगने से अगले दिन मीता के कमरे में मीटिंग हुई। पीछे से गुरलाभ ने क्या किया, इस बारे में मीता को कोई पता नहीं था। उसने जो दो अन्य कोठियाँ बाहर ले ली थीं, उसका यह काम मीता को भी पसंद आया। इस मीटिंग में लगभग पन्द्रह लड़कों ने भाग लिया। प्रधानगी गमदूर ने की। काफी समय विचार-विमर्श करने के बाद कुछ अहम फैसले हुए। सबसे पहली बात यह थी कि नई भर्ती बढ़ाई जाए। गमदूर का कहना था कि यहाँ हर लड़का अपना अपना ग्रुप तैयार करे जिसके लिए हर कोई तीन-तीन नए लड़के तलाश करे। ग्रुप चार लोगों का होना चाहिए। कमांडर-इन-चीफ़ गमदूर को बनाया गया। बाकी सभी को जनरलों के ओहदे दिए गए। अब हर एक जनरल ने अपना ग्रुप बनाना था। इस तरह भर्ती बढ़ा कर फिर एक्शन तेज किए जाएँ।
''भाई जी, इतने बन्दों के लिए हथियार कहाँ से आएँगे ?'' गुरलाभ का सवाल था।
''तुम जितने भी नये आदमी तैयार कर सकते हो, करो। मैं ऐसे एक्शन की रूपरेखा बना रहा हूँ जिससे हथियारों की खरीद का काम हो।''
''पर तब तक खाली बैठे रहें ?''
''नहीं, खाली तो नहीं बैठ सकते।''
''देखो न, सारी छुट्टियों में पहले ही एक्शन बन्द रहे। अब भी काम ढीला ही है। मेरी सलाह यह है कि भाई, अपनी पार्टी का लोगों पर दबदबा बना रहना चाहिए। वह काम एक्शन से ही होगा।''
''चलो, उसके बारे में भी करते हैं विचार। पर एक बात मैं सभी सिंहों को कहना चाहता हूँ कि हमने कोई ऐसा एक्शन नहीं करना जिससे लोग खाड़कुओं से टूटने लगें। हम कामयाबी लोक लहर बना कर ही हासिल कर सकते हैं। हमने लोगों को अपने संग जोड़ना है, न कि तोड़ना।''
''गलत काम करने वाले की सज़ा ही भाई जी गोली रखो। जो गोली दुश्मन के लिए, वही गोली गलत काम करने वाले अपने बन्दों के लिए।'' यह सलाह जब गुरलाभ ने दी तो जीता फौजी ने घूर कर उसकी तरफ देखा।
''चलो इस पर भी विचार कर लेंगे। फिलहाल, अपना-अपना ग्रुप और अपने-अपने अड्डे बनाओ। अगले हफ्ते बहुत ज़रूरी काम आ रहा है।''
''वह क्या ?''
''उसके बारे में अवसर आने पर ही बताया जाएगा। सभी तैयार रहें।''
गुरलाभ ने जो एक्शन कुम्हार मंडी में से लोगों को उठाकर किया था, उस बारे में पुलिस अभी कुछ नहीं कर सकी थी। इतना बड़ा कांड हो जाए और पुलिस चुप होकर बैठी रही ! इस केस ने केन्द्र सरकार तक की तारें हिला दी थीं। मौजूदा एस.एस.पी. को बदलकर उसके स्थान पर नया एस.एस.पी. लगाया गया। नाम उसका जमना दास था पर लोग उसे जमना कसाई के तौर पर जानते थे। उसने अपने हाथों सैकड़ों दोषी-निर्दोषी लड़के झूठे पुलिस मुकाबलों में मारे थे। उसने आते ही लुधियाना शहर की सड़कों को कंपा दिया था। जहाँ पर वह कांड हुआ था, वे खेत हड़म्बा रोड पर पड़ते गाँव मणसपुरे के थे। लुधियाना आने के दो दिन बाद ही उसने भारी पुलिस फोर्स लेकर गाँव मणसपुर को घेर लिया। स्पीकर पर बोलकर सारे गाँव को स्कूल में इकट्ठा किया गया। क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या बूढ़ी स्त्रियाँ, किसी को भी घर में रहने का हुक्म नहीं था। जमना दास का हुक्म था कि खाड़कू इनके घरों में छिपा करते थे, इसलिए सारे घरों की तलाशी ली जाए। खाली पड़े घरों की सी.आर.पी. और स्थानीय पुलिस ने तलाशी ली। खाड़कू तो कोई नहीं मिला पर जो कुछ नगदी या जेवरात मिला, सब पुलिस की जेब में चला गया। जमना दास यू.पी. का रहने वाला था। वह सी.आर.पी. फोर्स में से इधर पंजाब पुलिस में डेपुटेशन पर आया था। उसे न मौजूदा हालातों का पता था, न पंजाबी कल्चर के बारे में कोई जानकारी थी। अपनी जानकारी के मुताबिक वह पंजाब के सारे सिखों को खाड़कू समझता था। उसे ऐसे खराब हालातों पर नियंत्रण करने का कोई ढंग-तरीका नहीं आता था। यदि कुछ आता था तो वह था अत्याचार, पुलिस टार्चर। गाँव की तलाशी होते दस बज गए थे। गाँव वाले स्कूल में भूखे-प्यासे बन्द किए हुए थे। तलाशी से फुर्सत पाकर वह गाँववालों पर गरजा-
''सालो बताओ, उन माँ के यारों को कहाँ छिपा रखा है ?''
''अरे पंचायत कहाँ है ?'' क्रोध में उसके मुँह से थूक निकल रही थी। सरपंच हाथ बांधकर पंचायत के आगे खड़ा था।
''धी के यार, तू क्या सरपंची करता है रे।'' उसने डंडा सरपंच के कंधे पर मारा।
''जनाब, हम सौगंध खाते हैं, हमें उनके बारे में कुछ पता नहीं है और न ही वे हमारे गाँव के हैं।'' एक बुजुर्ग व्यक्ति आगे बढ़ा।
''तेरे धी के खसम और कहाँ के थे।'' उसने आगे बढ़कर बुजुर्ग आदमी को गिरा लिया। उसके कपड़े फाड़ दिए। दाढ़ी नोंच ली। केस पकड़कर घसीटा। पैर की ठोकरें मारीं। मुँह पर बूट का ठुड्डा मारकर सारे दाँत तोड़ दिए। बुजुर्ग का मुँह लहुलूहान हो गया। जो भी थोड़ा-बहुत बोलता था, उसकी वह बुरी हालत करता था।
''अरे, ये ऐसे नहीं मानेंगे। इनकी लड़कियों के कपड़े उतारो।''
एक बड़ी उम्र के सरदार एस.पी. ने आगे बढ़कर मिन्नत की, “सर, प्लीज़ यह मत करो।”
जमना दास ने एस.पी. की ओर घूरा, पर जो कुछ करने जा रहा था, उसे रोक दिया।
''जितने भी नौजवान हैं, सभी को पकड़ लो।''
सी.आर.पी. वाले लड़कों को धक्के मार कर ट्रकों पर चढ़ाने लगे।
''इन सबको मैं गोलियों से उड़ाऊँगा। फिर मैं सी.आर.पी. के जवानों को तुम्हारी औरतों पर चढ़ाऊँगा। सिख पैदा होने बन्द कर दूँगा। तुम्हारी नस्ल नहीं बदल दी तो मेरा नाम जमना दास नहीं।''
दिन भर पुलिस के अत्याचार गाँव पर होते रहे। पचास के करीब लड़कों को यातनागृहों में ले जाकर मछली की तरह तड़फाया गया। यूनिवर्सिटी के जिन दस-बारह लड़कों को पकड़ा हुआ था, उन सभी को जमना दास ने झूठे मुकाबले में मार दिया। नए पकड़े गए लड़कों में से कुछ तो पुलिस की यातनाओं को न सह पाने के कारण प्राण त्याग गए। कुछ को पुलिस ने गोलियों से उड़ा दिया। शेष पर पुलिस-अत्याचार जारी था। यह थी जमना दास, एस.एस.पी. की इन्कुवारी जो कि फिरोजपुर से तबादला होकर इधर आया था।
जमना दास के कारनामों के कारण एक स्पेशल मीटिंग एक नंबर कोठी में बुलाई गई थी। सभी लड़के रोष में थे।
''अगर ऐसे ही जुल्म-सितम होता रहा, तो हम क्या कर रहे हैं ?''
''हमारी बहन-बेटियों को वे नंगा किए किए जा रहा है, हम बैठे देखे जा रहे हैं।''
''ओए, वो तो कहता है, मैं सिख पैदा होने ही बन्द कर दूँगा।''
हर एक अपना-अपना गुस्सा उगल रहा था। गमदूर सभी को शान्त करवाते हुए बोला, ''देखो, मैं चुप नहीं बैठा। जिस दिन से उसने जुल्मों की आंधी शुरू की है, मैं भी उसके पीछे ही घूम रहा हूँ। किसी खास काम के लिए नाहर की डयूटी लगाई थी। यह अपना काम पूरा करके आज पूरी रिपोर्ट ले आया है। सभी भाई शान्त रहो। आज उसका प्रबंध करके ही हिलेंगे किसी तरफ।''
''प्लैन क्या है ?''
गमदूर आसपास देखता हुआ बोला, ''पहली कतार के सभी नेता यहाँ मौजूद हैं। इसलिए हमें प्लैन बताने में कोई झिझक नहीं। जब यह जमना दास फिरोजपुर में था तो वहाँ इसका एक ही खास यार था। वह है जिउणखेड़े का सरपंच। यह गाँव फिरोजपुर के साथ ही पड़ता है। नाहर की इन्कुआरी के अनुसार उस सरपंच की बड़ी बेटी मुलांपुर के नज़दीक राजाआली ब्याही हुई है। उसका काफी बड़ा परिवार है। अपने प्लैन की पहली चाल यह है कि उस सारे परिवार को उठाकर यहाँ अपने अड्डे पर लाना है। अगली कार्रवाई मैं उसके बाद बताऊँगा।''
''यह परिवार उठाने का काम मैं करूँगा।'' गुरलाभ उठकर खड़ा हो गया।
गमदूर ने पलभर गुरलाभ की तरफ देखा। फिर सहमति दे दी। रात के ग्यारह बजे गुरलाभ ने उस परिवार को लाकर तीन नंबर कोठी में ठूँस दिया। लेकिन गुरलाभ की मनोकामना पूरी न हुई। जो कुछ उस परिवार में से मिलने की उसने उम्मीद लगाई थी, वह नहीं मिला था, पर एक्शन उसने सही कर दिखाया था। उधर दूसरा ग्रुप रात के करीब दो बजे जिउणखेड़े के सरपंच को लेकर पहुँचा। उसकी आँखों पर से जब पट्टी उतारी गई तो उसके होश उड़ गए। सभी लड़कों ने अपने-अपने मुँह पर कपड़ा बांध रखा था, ''ये तेरे रिश्तेदार सभी सही-सलामत बैठे हैं। अगर तूने हमारा हुक्म न माना तो सभी की लाशें मिलेंगी।'' उन्होंने सरपंच की फिर आँखें बांध दी। यूनिवर्सिटी के पीछे किसी कोठी में ले जाकर गमदूर के सामने पेश किया। बेटी का परिवार बचाने के लिए वह खाड़कुओं का हुक्म मानने को तैयार हो गया। गमदूर ने उसे प्लैन समझाया। उसकी जमना दास के साथ गहरी दोस्ती थी। वे हर उल्टे-सीधे काम के साझी थे।
''देखो, वह एतिहात बहुत बरतता है। सारा दिन दफ्तर में से नहीं निकलता। दफ्तर में फोर्स से घिरा रहता है।'' सरपंच उसके भेद बताने लगा।
''तू उसके दफ्तर में किसी भी वक्त जा सकता है ?'' गमदूर मन में योजना बना रहा था।
''हाँ, इसमें कोई शक नहीं। वह हो या न हो, मुझे उसके दफ्तर में जाने से कोई नहीं रोकता। सभी मुझे जानते हैं।''
''तुम मौज मस्ती के लिए आमतौर पर किस वक्त बैठा करते हो ?''
''शाम को चार बजे के बाद। फिर चाहे जो भी टाइम हो जाए, वहीं रहते हैं क्योंकि उसकी कोठी भी पीछे की तरफ साथ ही है। दफ्तर से उठकर दूसरी तरफ का दरवाजा पार कर वह कोठी के अन्दर चला जाता है।''
''बात यह है कि चार बजे से पहले उसे दो घंटों के लिए दफ्तर से बाहर निकालना है। उसकी गैर-हाज़िरी में तुझे एक आदमी को अन्दर लेकर जाना है।''
सरपंच ने ऊपर की ओर देखते हुए मुँह बनाया। उसकी समझ में कुछ नहीं आया कि यह क्या करना चाहता है। कुछ सोचते हुए उसने सुझाव दिया, ''तुम ही उसे बाहर निकाल सकते हो।''
''वह कैसे ?''
''बाहर नज़दीक ही कोई वारदात कर दो। वह मौका देखने के लिए जाएगा। फिर लौट आएगा।'' सरपंच को जमना दास की आदत का पता था। गमदूर कुछ देर बैठा सोचता रहा। ''इसे उड़ाने के लिए कुछ मोल तो देना ही पड़ेगा।'' गमदूर मन ही मन प्लैन बनाने लगा। कुछ देर तक गमदूर ध्यानमग्न बैठा सोचता रहा। फिर उसने अपना प्लैन सरपंच को समझा दिया। ''हमारी तेरे परिवार से कोई दुश्मनी नहीं। ना ही तेरे से है। जैसे ही इसका घोड़ा चित्त हो गया, सभी को घर पहुँचा देंगे।'' सरपंच भी समझे बैठा था कि यह जो कुएँ में ईंट गिरी है, वह सूखी नहीं निकलने वाली। दूसरी ओर बेटी का सारा परिवार सूली पर चढ़ा हुआ था। उधर टाइम देखकर गुरलाभ ने कार स्टार्ट कर दी। नहर की पटरी उतरकर जी.टी. रोड पर चढ़ गया। इस एक्शन को करने का जिम्मा भी उसने ही लिया था। ऐसा एक्शन करने को तो वह कब से उतावला था। टूटी हुई लोकल बस उसके आगे-आगे जा रही थी। कुछ दूर जाकर बस लिंक रोड पर हो गई। गुरलाभ ने भी कार उस तरफ मोड़ ली। आगे जैसे ही ड्रेन का पुल आया, कार को आगे लगाकर उन्होंने बस रुकवा ली। अर्जन उछलकर ड्राइवर की बगल में बैठ गया। बस को ड्रेन की पटरी पर उतार लिया। थोड़ा आगे उजाड़-सी जगह पर जाकर कार भी रुक गई। बस को भी रोक लिया।
गुरलाभ ए.के. 47 लेकर बस में सामने वाली खिड़की से चढ़ा।
''हाँ, सारे मोने नीचे उतरो। बाकी घुटनों में सिर देकर झुक जाओ।'' बस में कौओं की कांय-कांय-सी मच गई।
दो और जने राइफलें लिए बस में चढ़े गए। गुरलाभ ने धमकाया तो किस्मत के मारे नीचे उतरने लगे। देखते-देखते सात-आठ लोग नीचे उतर गए। समय कम था। बग़ैर देखे-परखे गुरलाभ ने गोलियों की बौछार की। सभी ढेरी हो गए। एक्शन करने के बाद उन्होंने भागने की सोची।
सरपंच दो बजे के करीब ही एस.एस.पी. जमना दास के पास आकर बैठ गया था। एक बार चाय भी आ चुकी थी। वे करीब बैठकर बातें कर रहे थे। कभी वे किसी बात पर खुलकर हँसते और कभी घुसुर-फुसुर सी करने लगते। साहब बीच में उठकर कोठी की तरफ चला गया। उसकी अनुपस्थिति में सरपंच ने कूलर की तारें काट दीं। जब जमना दास अन्दर का चक्कर लगाकर लौटा तो ठंडक की जगह आग बरस रही थी।
''यह क्या हुआ ?'' उसने हैरान होकर कूलर की तरफ देखा।
''पता नहीं जी, चलते-चलते एकदम गरम हवा फेंकने लग पड़ा। मुझे लगता है, मोटर जल गई।''
''इसे भी अभी जलना था।'' उसके माथे पर पसीना उतर आया।
''आप कहो तो अभी ठीक करवा दूँ। यहीं नज़दीक ही है, मैं जानता हूँ एक मैकेनिक को।''
''यार यह तो करना ही पड़ेगा।''
तभी, फोन की घंटी बजी। जमना दास के फोन सुनते ही माथे पर त्यौरियाँ उभर आईं। वह टोपी सिर पर रखकर उठने लगा।
''क्यों जी, क्या हुआ ?''
''उन माँ के यारों ने बस में से निकालकर लोगों को मार दिया। आओ, अभी आ जाएंगे। मौका तो देखना ही पड़ेगा।''
''आप ऐसा करो, मौका अकेले देख आओ। मैं आपके लौटते तक कूलर ठीक करवा लेता हूँ।''
''यह भी ठीक रहेगा।''
''इन सिक्युरिटी वालों को कह दो, मेरे साथ मैकेनिक अन्दर आएगा। कहीं उसे बाहर ही न रोके रखें।''
''अरे कोई बात नहीं।'' वह चलते-चलते सिक्युरिटी वालों से बोला, ''ये सरपंच साहब किसी मिस्त्री को लाएंगे कूलर ठीक करने के लिए, उसे जाने देना।''
गाडियाँ सायरन बजातीं पास से गुजरीं तो गमदूर स्कूटर स्टार्ट करके सरपंच को लेकर पहले से तय की गई जगह पर पहुँच गया। वहाँ से उन्होंने बक्सा और औजार उठाये और लौटकर एस.एस.पी. के दफ्तर आ गए। सिक्युरिटी वाले बातों में लगे हुए थे। सरपंच के साथ कौन था और उसके पास क्या था, किसी ने ध्यान भी नहीं दिया। कारण, सरपंच सारा दिन तो वहाँ साहब के पास घूमता रहता था। और अब जाते समय, साहब कह गया था कि कोई कूलर ठीक करने आ रहा है।
एस.एस.पी. के कमरे में जाकर गमदूर फटाफट अपने काम में लग गया। सरपंच का कलेजा ज़ोरों से ऊपर-नीचे हो रहा था। पता नहीं आज क्या होगा। लोग ठीक ही कहते हैं कि पुलिस वालों के संग यारी बुरी होती है। वह अपने मन में ताने-बाने बुने जा रहा था। गमदूर ने बीसेक मिनट में सब कुछ तैयार कर दिया। सामान तो पहले ही डिब्बे में तैयार था। बस, कूलर में फिट ही करना था। उसने कूलर का स्विच उखाड़कर अपने डिब्बे का स्विच वहाँ लगा दिया।
''ले भई सरपंचा, काम हो गया। अब जैसे ही जमना कसाई अन्दर आए तो तू इस स्विच से कूलर ऑन कर देना।'' स्विच की तरफ इशारा करता गमदूर उसे समझा रहा था। सरपंच यूँ झांक रहा था मानो अपनी मौत के यम की तरफ देख रहा हो।
''अब, एक दो बातों का विशेष ख़याल रखना। एक तो जब तक वह अन्दर न आ जाए, स्विच ऑन न करना। दूसरा, स्विच ऑन करके तू किसी न किसी बहाने दफ्तर से बाहर निकल जाना। बाद में ऐसा कुछ होगा कि किसी को पता ही नही चलेगा कि जमना दास को क्या हो गया।''
गमदूर बहका कर सरपंच का मन किसी दूसरी तरफ मोड़ रहा था। वैसे तो स्विच दबाने की ही देर थी कि...
बाहर निकलते समय सरपंच ने दफ्तर को ताला लगा कर चाबी जेब में डाल ली जैसा कि वह अक्सर किया करता था। वे दोनों बाहर निकले। गेट पर आकर सरपंच ने गमदूर को भेज दिया। वह स्वयं वहाँ खड़े होकर पुलिस वालों से बातें करने लगा। इतने में सायरन की आवाज़ सुनी। साहब वापस लौट रहे थे। गाड़ी में से उतरता साहब सरपंच की ओर चल पड़ा।
''क्या कूलर ठीक हुआ ?''
''हाँ जी, थोड़ा सा नुक्स था। अब तो ठीक काम करता है।''
''तो चलो आओ, दफ्तर में चलते हैं।''
''सालों ने बड़ी बेरहमी से मारा लोगों को। तुम देखना, मैं कैसी आंधी लाता हूँ कल। सभी को आग लगा दूँगा। लोग यूँ ही तो नहीं मुझे जमना कसाई कहते।'' वह गुस्से में बोले जा रहा था।
सरपंच ने आगे बढ़कर दफ्तर का ताला खोला। दरवाजा खोलकर दोनों अन्दर चले गए। साहब ने टोपी उतारकर मेज पर रख दी। ''चलो, अब जल्दी स्विच ऑन करो।'' इतना कहकर साहब भी कूलर के समीप आ खड़ा हुआ। वह चाहता था कि कूलर चलने पर करीब होने से ठंडी हवा उसे जल्दी लगे। सरपंच सोच रहा था कि स्विच ऑन करूँ और बाथरूम जाने का बहाना बनाकर बाहर निकलूँ। उसने ज्यों ही स्विच को हाथ लगाकर थोड़ा-सा हिलाया तो इतना जबरदस्त धमाका हुआ कि धरती हिल गई। कमरे की छत उनके ऊपर आ गिरी। हर तरफ गर्दोगुबार छा गया। बाहर वाले पुलिस वालों को कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि यह क्या हुआ था। सब तरफ हफरा-तफरी मच गई। डरे-सहमे पुलिस वाले इधर-उधर भाग रहे थे। काफी देर बाद उन्हें पता चला कि बम्ब धमाका हुआ था। धीरे-धीरे जब धूल-गर्दा कम हुआ तो मानवी अंग छोटे-छोटे टुकड़ों में कटे हुए दूर-दूर तक बिखरे पड़े थे। कहीं सरपंच की उंगली पड़ी थी तो कहीं साहब का हाथ पड़ा था। मिनट-सेकेंड में सबकुछ मिट्टी हो गया था। उधर सरपंच की बेटी के परिवार को उसके घर ठीक ठाक पहुँचा दिया गया। उन्हें बताया गया कि सरपंच गलती से लपेट में आ गया। साथ ही समझाया गया कि वे होंठ सी लें। इधर पुलिस सोच-विचार में लगी थी पर उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि सरपंच ने जानबूझ कर मरने की क्यों ठानी। क्योंकि यह तो साबित हो गया था कि जो आदमी कूलर ठीक करने आया था, उसने ही बम्ब फिट किया था। सरपंच उसे जानता था इसलिए सरपंच को बम्ब के बारे में पता था। लेकिन यह पता नहीं चल रहा था कि सरपंच ने यह आत्महत्या वाला कदम क्यों उठाया। कुछ दिन बाद यह घटना पुरानी हो गई। अब हर रोज़ इससे भी बड़ी-बड़ी घटनाएँ हो रही थीं।
(जारी…)
00

1 comment:

Sanjeet Tripathi said...

shukriya padhwane ke liye, har kisht besabri se padh raha hu, us vakt ke halat ka sahi anuman laga sakta hu is upanyas ki kishtein padhne ke baad
waiting for next