Sunday, May 30, 2010

धारावाहिक उपन्यास





बलि
हरमहिंदर चहल
(गतांक से आगे...)

चैप्टर- 11(शेष भाग)

दिन दिहाड़े सरेआम पुलिस की गाड़ी उड़ा देने पर बाबा बसंत की बल्ले-बल्ले हो गई। खाड़कू ग्रुपों में उसका नाम सबसे ऊपर आ गया। हर तरफ बाबा बसंत के चर्चे थे। अभी तक वह किसी ग्रुप में नहीं था। कमांडो फोर्स वाले गमदूर आदि चाहते थे कि बाबा बसंत उनके ग्रुप में शामिल हो जाए। वे बाबा से मुलाकात की पुरज़ोर कोशिश कर रहे थे।
जोधां रोड से एक ओर लिंक रोड से हटकर चावलों के शैलर के पिछले कमरे में गमदूर और उसके साथी बैठे थे। बैठक संक्षिप्त थी। सभी लोग इस बैठक में नहीं आए। इस बैठक का खास मुद्दा बाबा बसंत को अपने ग्रुप में मिलाने का था। गमदूर और उसके साथी पहुँच गए थे। मीता और गुरलाभ भी इस मीटिंग में थे। बाबा बसंत की प्रतीक्षा हो रही थी। धान की बोरियों से भरी एक ट्राली मंडी की ओर से आई। बोरियों पर कामगार मुँह-सिर लपेटे बैठे थे। ट्राली एक तरफ खड़ी हो गई। कामगार नीचे उतरे। उनमें से बाबा ने मुँह पर से अंगोछा उतारा और पिछले कमरे में गमदूर की ओर चला गया। रस्मी आवभगत के बाद गमदूर ने कहा, ''बाबा, मुबारक हो... तूने यह जो मुकंदी वाला काम किया है, वो बहुत ही जोरदार काम किया है।''
''अपने सारे काम ही जोरदार होंगे। तुम देखना तो सही, पुलिस वालों की धज्जियाँ कैसे उड़ती हैं।'' बाबा ने पूरे गर्व से कहा। बाबा की बातें सुनकर गुरलाभ के मन में उथल-पुथल होने लगी। उसे अपना आप बाबा के सामने बहुत छोटा लगा। उसे लगा कि वह तो कुछ भी नहीं। बाबा उसे जंगल के शेर की भांति इलाके का बादशाह लगा जिसकी चारों ओर धूम मच रही थी। गुरलाभ का तो कोई नाम भी नहीं जानता था। बाबा का नाम तो चारों दिशाओं में गूंज रहा था। गुरलाभ को मन ही मन बाबा से ईर्ष्या हुई।
''पुलिस की धज्जियाँ तो फिर उड़नी ही चाहिएं जिसने हमें इस राह पर धकेला है।'' गमदूर ने बाबा की बात का उत्तर दिया।
''इस राह पर धकेले हैं का क्या मतलब ? मेरा मतलब तुम्हारा अपना कोई मकसद नहीं इस राह पर चलने का ?'' बाबा ने रूखा-सा प्रश्न किया।
''अपना मकसद भी है। बाकी पुलिस की ज्यादतियाँ भी इस तरफ चलने को विवश कर रही हैं।''
''अपने विचार मेल नहीं खाते गमदूर सिंह। बात को स्पष्ट कर।'' बाबा बसंत का यह स्वभाव था कि वह सच्ची और खरी बात मुँह पर करता था, फिर चाहे कोई बुरा ही मान जाए।
''बाबा फिर सीधी बात तो यही है कि हम अलग मुल्क बनाने की लहर से जुड़े हैं। बाहर रह रहे वर्करों को पुलिस जब पकड़ कर उनपर अत्याचार करती है तो वे अंडर-ग्राउंड होकर खाड़कुओं के संग आ मिलते हैं।'' गमदूर ने अपना स्पष्टीकरण दिया।
''एक बात मैं फिर स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि इस लहर से न तो मैं पहले जुड़ा था और न ही अब जुड़ा हूँ। यह तेरे सामने गुरलाभ बैठा है, इससे पूछ ले। इसने पहले कई बार मुझे इस लहर से जुड़ने के लिए कहा है, पर मैं हमेशा जवाब देता आया हूँ।'' बाबा गुरलाभ की ओर संकेत करते हुए बोला।
''यह बात तो बाबा की सही है।'' गुरलाभ ने स्पष्टीकरण दिया।
''पहले नहीं जुड़ा था तो अब जुड़ जा। अपनी आज की बैठक का खास मुद्दा यही है। बाबा तेरे जैसे व्यक्ति की इस लहर को ज़रूरत है।'' गमदूर ने बात फिर अपने हाथ में ले ली।
''लहर को होगी पर मुझे इस लहर की कोई ज़रूरत नहीं।'' बाबा ने स्पष्ट उत्तर दिया।
''क्यों ? तू नहीं चाहता कि कौम का अपना मुल्क हो।'' गमदूर ने सीधा सवाल किया।
''यह एक पृथक सवाल है। पर तुम्हारा अब का जो सवाल है, वह है कि मैं लहर के साथ जुड़ूँ जो कि मुझे मंजूर नहीं।''
''क्यों, जब इस राह पर चल ही पड़े तो फिर लहर से क्यों नहीं जुड़ना। इससे तो बल्कि हमारी ताकत बढ़ेगी।''
''देखो, अलग मुल्क होने या न होने से मुझे कोई मतलब नहीं। पहले न मैं इस जद्दोज़हद के हक में था और न उलट। मैं तो एक सामान्य ज़िन्दगी जी रहा था। यह तो पुलिस... बस चुप ही भली है।'' उसने बात पूरी न की। क्रोध में उसका चेहरा लाल हो गया।
''वही तो मैं कह रहा था कि पुलिस अत्याचार ने इस राह पर हमें डाला है।'' गमदूर तुरन्त बोला।
''मुझे इस राह पर डालने वाली अकेली पुलिस ही नहीं, तुम भी जिम्मेदार हो।'' बाबा ने दांत पीसते हुए बात की।
क्षणभर के लिए सब चुप हो गए।
''बाबा, वह कैसे ? हमने तुम्हें इस राह पर कैसे डाल दिया ?'' गमदूर थोड़ा-सा तल्ख़ होकर बोला।
''न तुम इस लहर को हॉस्टल में लाते और न वहाँ पर पुलिस का छापा पड़ता। तुम रोज़ वहाँ मीटिंगें करते थे, फिर पुलिस ने तो वहाँ एक दिन आना ही था। आप तो तुम सब भाग निकले और हत्थे चढ़ गए हमारे जैसे बेकसूर जिनमें से कइयों को पुलिस ने मार दिया। कितने ही शरीर से मुहताज हो गए और कुछ मेरे जैसे...।'' उसने बात बीच में ही छोड़ दी। पलभर रुककर बाबा फिर बोला, ''हमारा सारा परिवार कितनी ही पीढ़ियों से अमृतधारी चला आ रहा है। हक-सच की कमाई करने वाला। कभी किसी ने कुत्ते को डंडा तक नहीं मारा होगा। मेरे साथ पुलिस ने जो किया है, सबके सामने है। थाने में मेरे पर जो घोर अत्याचार हुआ है और मेरे स्वाभिमान को जो चोट पहुँची है, उसे मैं बयान ही नहीं कर सकता। मुकंदी लाल ने जो कुछ थाने के अन्दर मेरे संग किया, उस वास्ते एक मौत तो उसके लिए बहुत थोड़ी सजा है। मेरा रहा क्या है। पिता और भाई को पुलिस ने मार दिया। माँ और बहन इज्ज़त बचाती छिपती फिरती हैं।'' बाबा बसंत पलभर रुका। ''चल, जो उसे मंजूर, अब तो हो गया। घर-परिवार गया। न पीछा रहा, न आगा। बस, अब तो मौत की रानी से मिलन होना है। पता नहीं, किस मोड़ पर खड़ी हो।'' बाबा ठंडा होने लगा। ''देखो, हम सभी जानते हैं कि इस राह पर बहुत देर तक नहीं चल सकते, पता नहीं कहाँ मुकाबला हो जाए। लेकिन मेरा तो एक प्रण है, मुझे तो उन दुष्ट पुलिसवालों को सोधना है जो खाड़कुओं के नाम पर लोगों का लहू पीते हैं और साथ ही...।'' आगे बोलते-बोलते वह फिर रुक गया।
''तभी तो बाबा कहता हूँ कि जब दुश्मन साझे हैं तो फिर हम एक क्यों न हो जाएँ।'' गमदूर फिर बोला।
''मेरा दुश्मन अकेले दुष्ट पुलिसवाले हैं और तुम्हारे तो पता नहीं कौन-कौन दुश्मन हैं।'' बाबा नफ़रत में बोला।
''बाबा, बात स्पष्ट कह। अब जब हम एक साथ बैठ ही गए हैं तो छिपाव कैसा।''
''तो फिर मुझे बताओ कि जो बसों में से हिंदू निकाल कर मारे जा रहे हैं, क्या वो एक्शन सही हैं।''
''नहीं, बहुत गलत है। हम उससे सहमत नहीं।''
''फिर एस.एस.पी. को बाहर निकालने के लिए जिन लोगों को मारा, उनके बारे में क्या कहते हो ?'' बाबा ने गमदूर की आँखों में आँखें डालकर कहा।
''वह गलती से आप्रेशन बड़ा हो गया। पर अगर जानकी दास को न मारते तो वह अब तक आधा लुधियाना खाली कर देता।''
''जो कुम्हार मंडी से उठाकर मणसपुरे ले जाकर मारे हैं ?''
''इस तरह अब बाबा कितने गिने जाएँगे। संगठन भी बहुत सारे हैं। कई एक दूजे के नाम के नीचे भी एक्शन किए जाते हैं। एक ही जवाब मैं तुझे देता हँ कि कमांडो फोर्स और मत्तेवाला कमेटी निर्दोषों के क़त्ल के विरुद्ध है।'' गमदूर से लटकती बात को खत्म करना चाहा।
''चल, यह तो हो-हुआ गई। मुझे यह भी बता दो कि निर्दोषों की इज्ज़त के बारे में तुम्हारा क्या ख़याल है ?''
''वह कैसे बाबा ?'' गमदूर के माथे पर त्यौरी पड़ गई।
''कुछ खाड़कू रात में लोगों के घरों में जाते हैं। सारे परिवार को एक कमरे में बन्द करके परिवार की लड़कियों की इज्ज़त लूटते हैं।''
''कहाँ हुआ ये ?'' गमदूर और मीता एक साथ बोले।
''किया तुमने हैं और पूछते मुझसे हो ?''
''बाबा, गलत इल्ज़ाम मत लगा।'' मीता ताव खा गया।
''अच्छा, तू बता मीते, तुमने एक रात दुगरी कलां गाँव में मुखबिरों की कुटाई नहीं की थी ?''
''हाँ, यह बिलकुल सही है। मैं संग था।'' मीता ने धैर्य के साथ जवाब दिया।
''उनमें से जो खेतों में रहता था, वह मुखबर नहीं था। बल्कि एक साधारण और शरीफ आदमी था।'' बाबा ने मीता को बताया।
''हो सकता है, तेरी बात सही हो, पर हमें ऊपर से जो आदेश मिला, हमने उसके मुताबिक उसकी पिटाई की थी।''
''सिर्फ पिटाई ?''
''और क्या ?'' गुरलाभ ने राइफल उठा ली। पता नहीं अगली घड़ी क्या हो जाए।
''पहले दिन तुमने उसे पीटा। दूसरे दिन तुम फिर गए। उसके पूरे परिवार को कमरे के अन्दर बन्द करके उसकी जवान लड़की से जबर-जिनाह किया। यहीं पर बस नहीं हुई। बाद में सारे परिवार का खातमा किया।''
''बाबा, तू इल्ज़ाम लगा रहा है।'' मीता गुस्से में उठकर खड़ा हो गया।
''क्यों, इल्ज़ाम क्यों ? यह सच बात है।'' बाबा दृढ़ था।
''देख बाबा, पहले दिन हम उसके घर ज़रूर गए थे। पर दूसरे दिन वाला काम किसी दूसरे ने किया है। हम ऐसे घिनौने काम नहीं करते।''
''किसने किया, इसकी तुमने खोज-बीन नहीं की। लहर के नाम पर जो ऐसे काम करते हैं, वे तो सबसे बड़े दुश्मन हैं।''
''यह तो बात ठीक है, किस किस का पता लगाया जाए, यहाँ तो जगह जगह पर कौम के गद्दार बैठे हैं।'' गमदूर निराश-सा बोला।
''तुमने इस तरफ कभी ध्यान ही नहीं दिया होगा कि तुम्हारी कमांडो फोर्स के नाम तले क्या-क्या हुए जा रहा है। ये लुहारे में एक विधवा औरत की लड़की के साथ ज़ोर-जबरदस्ती हुई। भटिया गाँव के एक गरीब पंडित के घर भी लड़की के साथ मुँह काला किया।'' सब तरफ चुप्पी छा गई। गुरलाभ को लगा मानो बाबा को उसके बारे में पता हो। जब बातें करता हुआ बाबा एक बारगी भी उसकी तरफ नहीं झांका तो वह संतुष्ट हो गया।
''देखो, गरीबों को तंग करने वाले, गरीबों से जबरन पैसे उगाहनेवाले और बन्दूक की नोक पर गरीबों की इज्ज़त से खिलवाड़ करने वाले तुम्हारी लहर को सबसे बड़ा धब्बा लगाते हैं। तुम्हारा सबसे पहला काम इन्हें सबक सिखाने का होना चाहिए। नंबर दो, निर्दोषों की हत्या नहीं होनी चाहिए। इसमें निर्दोष पुलिसवाले भी आते हैं। दुष्ट पुलिसवालों के चक दो फट्टे। यदि ये बातें तुम्हें मंजूर हैं तो मैं तुम्हारे साथ मिलकर चलने के बारे में सोच सकता हूँ।''
''बाबा यह तो वैसे ही बहुत ज़रूरी है।'' गमदूर कुछ सोचते हुए बोला।
''फिर ठीक है। एक कमेटी बनाओ जो इस तरह के एक्शनों की पड़ताल करे। दोषी बन्दों का पता लगाए। तुम पता लगाओ और सोध मैं दूँगा। बख्शना किसी को नहीं, चाहे अपना ही आदमी क्यों न हो।'' बाबा शांत होता हुआ बोला।
''ठीक है बाबा। अपनी अगली मीटिंग तक कमेटी अपना काम कर लेगी।'' गमदूर ने समझौते की रौ में कहा।
''चलो, फिर अगली मीटिंग में अगला प्रोग्राम विचारेंगे। तब तक कहीं ज़रूरत हो तो मुझे सन्देशा दे देना। मैं तुम्हारी हर मदद करूँगा। तब तक मैं तुम्हारी पार्टी में शामिल नहीं होता।''
(जारी…)
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1 comment:

Sanjeet Tripathi said...

hmm, ab kahani sahi line me aati hui dikh rahi hai, kyonki baba ne jo baatein uthai hai mauke ki uthai hai... agli kisht ki pratikshha hai ji, mai to jaise bandh sa gaya hu aapke is upanyas se, agar sara anuvad ek sath hath lag jata to ek hi baithak me khatm karta, jaise baki pasand aane wale upanyaso ka hal karta hu.......
shukriya...