Sunday, September 26, 2010

धारावाहिक उपन्यास



बलि
हरमहिंदर चहल
(गतांक से आगे...)

चैप्टर- 22
सुखचैन छुट्टी से वापस आकर रतनगढ़ पहुँचा तो उसने देखा कि अमरीक के बताये अनुसार खाड़कुओं ने रेस्ट हाउस को अड्डा बना लिया था। नीचे के तीन कमरे और ऊपर का चौबारा उनके कब्जे में था। उनकी संख्या भी आठ-दस के करीब थी। रेस्ट हाउस एक किले में तब्दील हुआ पड़ा था। दो आदमी हमेशा चौबारे में बैठे पहरा देते थे। उधर मंत्री जी के विदेश चले जाने के बाद गुरलाभ ने एक्शन आरंभ कर दिया। अगले दिन अख़बारों की मुख्य सुर्खी थी - ''कम्युनिस्ट पार्टी के पुराने नेता कामरेड दर्शन सिंह और कांग्रेस के दरवेश सियासतदान सरदार गुरबाग सिंह खाड़कुओं के हाथों हलाक।''
फिर मंत्री जी के मुख्य विरोधी भाजपा नेता राणा बहिणीवाल का दिन दिहाड़े शहर में क़त्ल हो गया।
उसके अगले दिन 'रोज़ाना बाणी अख़बार' के मालिक गिरधारी लाल को खाड़कुओं ने उसके दफ्तर में ही मार दिया। इस प्रकार अगले लगभग डेढ़ महीने तक कोई भी दिन सूखा नहीं गया था जब खाड़कुओं ने कोई न कोई लीडर न मारा हो। खाड़कुओं के आतंक से सारा इलाका त्राहि-त्राहि कर उठा।
इन दो महीनों में पुलिस के ख़ास अफ़सरों, बीच के दलालों और गुरलाभ आदि की तिजोरियाँ मुँह तक भर गई थीं। अनगिनत लोगों का गुरलाभ के दल ने सफाया कर दिया था। कितने ही मुकाबले पुलिस वालों ने बना दिए थे। मंत्री जी ने दो महीने दिए थे। गुरलाभ ने सारा काम डेढ़ महीने में ही पूरा कर लिया था। मंत्री जी ने हालांकि पूरी हिदायत दी थी लेकिन रणदीप फिर भी गुरलाभ के अड्डे खोजने की कोशिश लगातार करता रहा। उसे सफलता नहीं मिली थी। वह तो शहर में ही ख़ाक छानता रहा। बाहर की तरफ तो उसने ध्यान ही नहीं दिया था। गुरलाभ ने सारा काम समाप्त कर, जिस दिन अन्तिम एक्शन किया, उस दिन उसने रणदीप से फोन पर बात की।
''मैं अब तुझे दसेक दिन में सम्पर्क करूँगा। अब सब काम बन्द रहेंगे।''
''मेरे लायक कोई काम है तो बता या कोठी आ जा।'' रणदीप पुलिस वाले दांवपेंच खेलकर उसके अड्डों का भेद जानना चाहता था।
''कोई बात नहीं। अब तो मंत्री जी लौटने वाले हैं।'' गुरलाभ ने फोन काट दिया।
फिर वह लुक-छिपकर अपने ग्रुप के लड़कों से मिलने लगा। रतनगढ़ रेस्ट हाउस के साथ-साथ उसके आदमी दो और जगहों पर अपने ठिकाने बनाये बैठे थे। उसने सभी लड़कों को समझाया कि अगले दस दिन कोई एक्शन नहीं करना। सबको शरीफ बनकर रहना है। उसके पास अब तक बीसेक लड़के हो चुके थे। पिछले डेढ़ महीने में सभी ने खूब पैसे बनाये थे। सभी गुरलाभ के दिमाग की दाद देते थे। आज तक किसी भी लड़के का नुकसान नहीं हुआ था। सब मौज मारते थे। गुरलाभ के आदेश पर सभी लड़के अपने अड्डों के अन्दर ही दुबक कर बैठ गए। गुरलाभ ने सत्ती के घरवालों के साथ सम्पर्क बनाया हुआ था। उसका कहना था कि मंत्री जी खुश होकर गुरलाभ और सत्ती को किसी बाहरी देश में घूमने के लिए भेजना चाहते हैं। आजकल के हालातों के कारण यह बात बहुत छुपा कर रखनी थी। उसका यह भी कहना था कि बस, तुरन्त ही चल देना होगा। इसलिए अभी से तैयारी रखी जाए। सत्ती के पैर धरती पर नहीं लग रहे थे। विवाह से पहले ही विदेश की सैर, बाद में पता नहीं क्या-क्या मिलेगा। एक मुश्किल थी कि वे इकट्ठा होकर चलेंगे कहाँ से। सत्ती अमरगढ़ अभी जा नहीं सकती थी। अभी विवाह नहीं हुआ था। ऐसे ही गुरलाभ भी अभी रत्ते खेड़े नहीं जा सकता था। फिर इसका हल भी खोज लिया गया। दोनों परिवारों का साझा दोस्त-परिवार डबवाली में रहता था। प्रोग्राम बना कि उसी के घर में इकट्ठा हुआ जाए। वहीं से दिल्ली को रवाना हुआ जाए। सत्ती की माँ ने कुछ एतराज़-सा किया।
''लड़की का अभी विवाह भी नहीं हुआ। विवाह से पहले ही होने वाले पति के साथ सैर करने जाना शोभा नहीं देता।''
''बीबी, यह तो पुराने ख़यालों की बातें हैं। और फिर बाद में तो गुरलाभ एम.एल.ए. के चुनाव में बिजी हो जाएगा, फिर कब टाइम मिलेगा।'' करनबीर ने समझाया। फिर जैसे-तैसे होकर माँ भी मान गई।
गुरलाभ ने चौदह नवम्बर को डबवाली पहुँचने की हिदायत दी। उसका कहना था कि सिर्फ़ घर के सदस्य ही हों। यहाँ तक कि कोई रिश्तेदार भी न हो। न ही इस टूर की बाहर किसी को भनक लगे।
गुरलाभ उस रात सभी ठिकानों पर गया। सभी लड़कों के संग अच्छी-अच्छी बातें कीं। ''अब अगले प्रोग्राम बहुत खूंखार होंगे। तुम देखना तो सही, हम सारे पंजाब पर कब्ज़ा कर लेंगे।'' उसकी बातों को सुनकर लड़के ऐड़ी के बल बैठे थे।
''पर भाई जी, प्रोग्राम क्या है ?'' बीच में किसी ने पूछा।
''यह तय करने के लिए पन्द्रह नवम्बर की रात को रतनगढ़ नहरी कोठी में मीटिंग रखी है। मीटिंग रात के बारह बजे के करीब शुरू होगी। यही बताने के लिए मैं आज तुमसे मिलने आया हूँ।'' उसकी बात सुनते ही लड़के और अधिक हौसलापरस्त हो गए। ''किसी को सीधे रास्ते नहीं जाना। खेतों में से होकर जाना है। और उस दिन हथियार संग लेकर नहीं चलना। पुलिस जगह-जगह पर छिपी बैठी है। यदि खेतों के बीच से जाते हुए कोई रोके तो कह सकते हो कि खेत जा रहे हैं। हथियार पास में हुआ तो मुश्किल हो सकती है। उस मीटिंग के बाद रोज़ हथियार ही उठाने हैं। याद रखना, बारह बजे से लेट नहीं होना।'' उसकी बातें सुनकर हरेक सोच रहा था कि बारह तो दूर, वह तो ग्यारह बजते को पहुँच जाएगा।
तेरह नवम्बर की रात गुरलाभ घर में आ गया था। उसके बाद वह घर से बाहर नहीं निकला। चौदह नवम्बर को वह दिनभर घर में ही रहा। घर में रहने का सबसे बड़ा कारण था कि शायद मंत्री जी का कोई सन्देश न आ जाए। फिर वही बात हुई कि दोपहर के बाद मंत्री जी की कोठी से फोन आया। गुरलाभ को मंत्री जी की हिदायत पर कोठी बुलाया गया था। जैलदार ने गुरलाभ को कार में बिठाया और मंत्री जी की कोठी पहुँच गया। गुरलाभ ने जैलदार को वापस भेजते हुए कहा, ''आप मामा जी, वापस जाओ। आपको मैं अब कल डबवाली में ही मिलूँगा। आप अकेले ही आना।'' जैलदार वापस गाँव की ओर मुड़ गया। गुरलाभ को मंत्री जी के प्राइवेट कमरे में बैठे हुए कुछ ही समय बीता था कि मंत्री जी का फोन आ गया। उनके पी.ए. ने फोन पर थोड़ी-सी बात की। फिर फोन गुरलाभ को पकड़ा दिया और खुद कमरे से बाहर चला गया। रस्मी बातचीत के बाद मंत्री जी असली मुद्दे पर आए, ''शाबाश बेटे, तूने मेरे पीछे सारा काम बहुत बढ़िया ढंग से संभाला।''
''जी आपका आशीर्वाद है।''
''मैं तेरे काम से बहुत खुश हूँ। पहले तय किए गए प्रोग्राम के अनुसार तुझे कल मुझे दिल्ली वाली कोठी में मिलना है।''
''जी, ठीक है।''
''अब तुझे यहाँ कोठी से बाहर नहीं जाना। सवेरे यहीं से दिल्ली के लिए चलना है। बाकी बातें मिलकर होंगी। तुझे किसी दूसरे से कोई बात नहीं करनी।''
''जी, ठीक है।''
इसके बाद पी.ए. ने गुरलाभ को एक स्पेशल कमरे में ठहरा दिया। फिर कुछ देर बाद एस.पी. रणदीप को मंत्री जी का फोन आ गया, ''मैं कल तक शहर पहुँच जाऊँगा।''
''जी सर।''
''तुम शहर के प्रतिष्ठित लोगों की मीटिंग बुला कर यह बात बता दो कि मंत्री जी दिल्ली पहुँच गए हैं। अपने इलाके में घट रहीं आतंकवादी कार्रवाइयों के बारे में उच्च अधिकारियों से मीटिंग कर रहे हैं। उनके आते ही आतंकवादियों का नामोनिशान मिटा देंगे।''
''तुम्हें सवेरे जल्दी मेरी कोठी पर पहुँचना है। गुरलाभ के काफ़िले को पंजाब की सरहद पार कराकर ही वापस लौटना है।''
''जी, ठीक है सर।'' फोन कट गया। रणदीप, गुरलाभ और मंत्री जी दोनों को ही मन में गालियाँ दे रहा था। ''साले मुझे समझते ही कुछ नहीं। चलो कोई बात नहीं। पानी ने गुजरना तो पुल के नीचे से ही है न।'' उसे उतावली थी कि शीघ्र ही वह अपना नाम बनाये। उसके बाद उसने शहर के लीडरों की बैठक बुलाकर मंत्री जी का सन्देश सभी को सुना दिया। शाम तक सारे शहर में अफवाहें थीं कि मंत्री जी दिल्ली में बैठे अपने इलाके की सुरक्षा का ही प्रबंध कर रहे थे। एक दो दिन में वापस लौटकर वे सब कुछ ठीक कर देंगे।
पन्द्रह नवम्बर की सुबह मंत्री जी की कोठी से मंत्री जी की झंडी वाली कार निकली। सबसे आगे पायलट गाड़ी थी। आगे पीछे अन्य सिक्युरिटी की गाड़ियाँ थीं। मंत्री जी वाली गाड़ी में गुरलाभ के साथ एस.पी. रणदीप बैठा था। गाड़ियों का काफ़िला दिल्ली की ओर चल पड़ा। रणदीप, गुरलाभ के संग साधारण-सी बातें करता रहा। उसे पता था कि मंत्री जी के हुक्म के बगैर यह कुछ नहीं बताएगा। डबवाली शहर में पहुँचते ही गाड़ियों का काफ़िला रुक गया। यहाँ से रणदीप ने वापस लौटना था।
''अच्छा गुरलाभ, गुड लक।''
''चलो ठीक है, जाओ फिर।'' रणदीप के इतना कहते ही गुरलाभ की गाड़ियाँ चल पड़ीं। फाटक पार करके पायलट गाड़ी सिनेमा वाली गली मुड़कर सिनेमा के पिछवाड़े बड़ी कोठी के सामने जा खड़ी हुई। गुरलाभ की गाड़ी कोठी के बिलकुल सामने रुकी। वह तेजी से कार से उतरकर अन्दर चला गया। अन्दर उसने अधिक समय नहीं लगाया। सत्ती सामान सहित तैयार थी। गुरलाभ मामा जैलदार के पैर छूकर उन्हें जफ्फी डालकर मिला। सत्ती की माँ को माथा टेका। करनबीर से कसकर हाथ मिलाया। फिर, फटाफट सत्ती को लेकर कार में बैठ गया। नौकरों ने सामान पिछली गाड़ी में टिका दिया। जैलदार और करनबीर गुरलाभ को झंडी वाली कार में बैठा देखकर गदगद हुए बैठे थे। सत्ती को संग लेकर गाड़ियाँ हाईवे पर चढ़कर दिल्ली की ओर चल दीं। दोपहर से कुछ समय बाद गुरलाभ का काफ़िला मंत्री जी की दिल्ली वाली कोठी पर जा पहुँचा। मंत्री जी रात में ही आ गए थे। नींद पूरी करके कुछ समय पहले ही उठे थे। चाय-पानी पीने के बाद गुरलाभ मंत्री जी के प्राइवेट कमरे में उनके सम्मुख बैठा था।
''तेरे सारे कामों के बारे में मुझे रिपोर्ट मिलती रहती थी। काम तूने बहुत तसल्लीबख्श किया है। पर शहर में आतंक बहुत फैला दिया।'' मंत्री जी की टोन कुछ बदली हुई थी।
''आप जल्दी जाकर लोगों को आतंक-मुक्त करो फिर।''
''मुझे पता है कि मुझे अब क्या करना है।''
''लोग भी आपका ही इंतज़ार कर रहे हैं कि कब मंत्री जी आएँ, कब इस आतंक से मुक्ति मिले।''
''अच्छा, अब मुझे समझा सारी डिटेल।'' मंत्री जी ने पूरा ध्यान गुरलाभ की बातों की तरफ कर लिया।
उसने सब कुछ विस्तार से बता दिया।
''ये ले पासपोर्ट और टिकटें। अच्छी तरह देख-परख ले।'' मंत्री जी ने पासपोर्ट गुरलाभ के सामने रख दिए। एक पासपोर्ट पर गुरलाभ की फोटी लगी थी और नाम लिखा था - हरलाभ सिंह पुत्र श्री प्यारा सिंह, गाँव-राजपुरा, ज़िला-गंगानगर, राजस्थान। दूसरा सत्ती का पासपोर्ट था। उस पर गलत पता और सूबा राजस्थान अंकित था। दोनों पासपोर्टों पर कनेडा का वीज़ा लगा हुआ था। फ्लाइट का टाइम आज की रात सवेरे दो बजे का था। गुरलाभ ने आगे बढ़कर मंत्री जी के चरण स्पर्श किए। मंत्री जी उसे गौर से देखते रहे।
''आज से तू हरलाभ सिंह है, अच्छा अब तू जा...।'' इतना कहते हुए मंत्री जी पीछे कोठी में चले गए और गुरलाभ सत्ती के संग गाड़ी में जा बैठा।
''ये पासपोर्टों पर गाँवों के नाम और पतें गलत क्यों लिखे हुए हैं ?''
''मंत्री जी ने जल्दबाजी में यहीं दिल्ली से पासपोर्ट बनवाये हैं। जल्दबाजी के काम ऐसे ही होते हैं। अब नहा-धो कर तैयार हो, एअरपोर्ट को निकलें।'' गुरलाभ की बातों ने सत्ती के प्रश्नों को विराम लगा दिया। वह उठकर तैयार होने लगी। फ्लाइट से दो-तीन घंटे पहले वे एअरपोर्ट की ओर चल पड़े। इधर-उधर कागज-पत्र चैक करवाते और पासपोर्टों पर स्टैम्प लगवाते उन्हें दो घंटे लग गए। सभी तरफ से मुक्त होकर आखिर में सिक्युरिटी प्वाइंट पार करके वे एअर कैनेडा के जहाज में जा बैठे।
(जारी…)
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